Saturday, July 26, 2014

" चलो दीपक जलाता हूँ "

अँधेरा है , मगर फिर भी,चलो दीपक जलाता हूँ !!

निशा ने आज ठाना है ,
रौशनी होने न देगी !
होगा नहीं उजाला अब ,
धरा अम्बर को तरसेगी !

तिमिर से मैं , मगर फिर भी , सदा विपरीत जाता हूँ !
अँधेरा है , मगर फिर भी , चलो दीपक जलाता हूँ !!

मेघों ने कहा हुंकार ,
कर ले दासता स्वीकार !
चाँद तारे सभी तेरे ,
छुपे देखो मुझसे हार !

मगर निष्ठा मेरी ज्योति , उसे ही आजमाता हूँ !
अँधेरा है मगर फिर भी , चलो दीपक जलाता हूँ !!

अँधेरे का देखो राज ,
मूक है सारा विज्ञ समाज !
सक्षम जो करते प्रतिरोध ,
नदारद उसको देकर ताज !

मेरी हस्ती है छोटी सी , तो खुद को ज्वाल बनाता हूँ !
अँधेरा है मगर फिर भी , चलो दीपक जलाता हूँ !

प्रलय का दम घटा भरती ,
सहमती काँपती धरती !
तिमिर के राज में कुछ भी ,
रहेगा शेष कहीं नहीं !

प्रलय से मैं नहीं डरता , सृजन के गीत गाता हूँ !
अँधेरा है , मगर फिर भी , चलो दीपक जलाता हूँ !"
       ........"अशोक सूर्यवेदी"......

"बतलाता है गढ़कुंडार"

जुल्मी , हुकूमत , तानाशाही ,
पाप , अराजक , व्यभिचार !
ये फसलें हैं कितने दिन की ?
लहरा लें दिन दो या चार !
आतंक रहा न रावण का ,
ना सदा कंस की सत्ता ही!
समय मसीहा बनकर आता ,
बतलाता है गढ़ कुंडार !!

Thursday, July 24, 2014

यही सिखाता गढ़कुंडार

रहे न राजा रजवाड़े ,
न महारानी राजकुमार !
न महलों में तुरही बजती ,
न ही सजते हैं दरबार !
राज बदल गए न्रपतियों के ,
राजलक्ष्मी भी जा सोयी !
पर यश अपयश सदा जियेंगे ,
यही सिखाता गढ़ कुंडार !!
....................."अशोक सूर्यवेदी"

Wednesday, July 23, 2014

" कुंडार दर्शन "

इतिहासों के जर्जर पन्ने ,
खंडहरों के दर्द शुमार !
गूँथ के लाया तुकबंदी में ,
गए महलों के आंसू चार !
मुझको कविता की समझ नही ,
मत कवि कहना मुझे मगर !
तुम्हे सुनाऊंगा मैं सब जो ।
कहता मुझसे गढ़ कुंडार !!
................." अशोक सूर्यवेदी "

खेतसिंह हैं महान

कालिंजर कुंडार ,
महोबे पै फहराती जो ,
कीर्ति ध्वजा ,
खंगधारिओं ने फहराई है !
खजूरिया वो खजुराहो ,
कर रहा गुणगान ,
खेत सिंह हैं महान ,
युग नारी हरषाई है !
नंगी भोग्या जो ,
वस्तु बनी थी बाजार की ,
खेत सिंह राज्य ,
पूज्य ध्वजा बनी छाई है !
हुए जन बिह्वल ,
गायें सब करतल ,
हमें तो सत्ता श्रेष्ठ ,
खंगारों की ही आई है !
..........."अशोक सूर्यवेदी"

Tuesday, July 22, 2014

जय खंगार

कर आचमन माँ वेत्रवती से ,
गणपति को शीश झुकता हूँ !!
फिर माँ सरस्वती मैं तेरे दर पर,
याचक बनकर आता हूँ !!
माँ से शब्द सम्पदा ले अब ,
इतिहासों के साक्ष्य जुटाता हूँ !!
फिर गिरिवासन तेरे दर पर,
श्रद्धा से शीश झुकता हूँ !!
कुलदेवी मात गजानन ",
साक्षी मैं यह तुमसे रखता आस !!
साथ कलम का देकर माँ अब ,
लिखवा दो तुम इतिहास !!
वीर की गाथा है यह जिसने ,
जूझ के जीना मरना सीखा !!
तो सच को सच गाने की खातिर ,
मैंने भी कब डरना सीखा !!
जो म्रत्यु भय से मुक्त कराती ,
मातु कालिके नमस्कार ! !
अब निर्भय होकर गाता हूँ ,
मैं गौरव गाथा जय खंगार !!
"अशोक सूर्यवेदी "

Monday, July 21, 2014

गिद्ध वासनी पुकारती है

काशी जैसी पुण्य भूमि ,
वीरों की ये वीर भूमि !
चोरों का है गढ़ हमें ,
ये न बतलाइए !
राष्ट्र हित धर्म हित ,
उठाया है खड्ग नित!
गाथा खंगारों की छुपी ,
पर्दा हटाइए !
भारती के पूतो ,
गिद्ध वासनी पुकारती है !
खेतसिंह जैसे सिंह ,
को न विसराइए !
बांदेलों का कहा सुना ,
सत्य से है परे सदा !
अंधी कानी दौड़ में न ,
कलम लजाइए .....!!

अशोक

कुंडार को नमन है


शेरों सा है शेर वंश ,
वीरों में है वीर वंश !
महारुद्र अंश ,
खंगार को नमन है !
नारी की सुरक्षा हित ,
वीरों की परीक्षा हित !
चमकी जो सदा ,
असिधार को नमन है !
केशर ने जौहर किया ,
मानी स्वाभिमानी थी !
भस्मी भूति देह ,
अंगार को नमन है !
जूझना परम्परा है ,
जुझौति वसुंधरा है !
वीरों का है धाम ,
कुण्डार को नमन है !!

.........."अशोक सूर्यवेदी"

"गीत लिखूंगा तुम गाना "

फिर आई है शर्द लहर ,
अब सड़क किनारे बाहर गाँव ,
झड़ी में फिर बेर पकेंगे ,
लिए तुम्हारे मैं तोडूंगा ,
खट्टे मीठे तुम खाना ,
रक्त बिन्दुओं से ऊँगली पर ,
गीत लिखूंगा तुम गाना !
जाना , तुम न जाना , तुम न जाना .........!!!

Sunday, July 20, 2014

" उमर बीत गयी "

उमर बीत गयी कब जाने ,
शेष बचा जीवन कितना !
काम तनिक न हुआ जन्म का ,
लेकर आया था जितना !
आगाह तुम्हें करता हूँ ,

प्रिय तुम भूल न जाना !
निज अनुभव लेकर के ,
मैं गीत लिखूंगा तुम गाना !
जाना , तुम न जाना , तुम न जाना ...!