Friday, March 26, 2010

MAHARAJA KHET SINGH KHANGAR

राष्ट्र धर्म और जुझारू संस्कृति के जनक
महाराजा खेत सिंह खंगार
                                                          अशोक सूर्यवेदी
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वीर प्रसूता पावन भू पर , वीर खंगारों सी संतान !
सदियों का इतिहास बताता ,खंगार वीर थे बड़े महान !
खंग अंग जो धारण करते कहलाते थे वो खंगार !
 इसी जुझौति में जन्मे थे एक राजन ऐसे खेत खंगार !
शेरों से बिन शस्त्र वो लड़ते बज्र देह वाले थे खेत !
खड्ग धार जब रण में डटते बैरी नवते सैन्य समेत !
बैशाख मास अक्षय तृतीया तिथी पुनीता !
खेतसिंह ने गण परिषद् का बहुमत जीता !
धसान बेतवा यमुना के जल से पावन अभिषेक हुआ !
विंध्याचल मुदित मन भारी उत्सव यह देख हुआ !
सिंहासन पर बैठा नायक चंदेलों का दिल धक् धक् धड़का !
आततायी यवनों का भी रक्त धमनियों में छनका !
आशा टूटी पड़िहारों की गोंडों के सपने टूट गए !
क्रूर अधर्मियों के अल्ला भी उनसे रूठ गए !
दिल्ली पर शासन करते थे राजन प्रथ्वीराज महान !
मित्र बनाया खेत सिंह को बड़ी दिनोदिन उनकी शान !
विजय महोबा किया खेत सिंह उदल ना सह पाया वार !
आल्हा और परमाल से योद्धा रण से छोड़ भागे संग्राम !
खंगार वीर का लौह मना दिल्ली पति ने महोबे माह  !
विजय तिलक कर खेत सिंह का दिल्ली शासन की दी छांह !
आतंक तभी गौणों का सीमा लाँघ गया सिर होकर पार !
चैन की साँसे दी जनता को गोणों का कर के संहार !
प्रथ्वी राज मुदित मन भरी खेत सिंह की जय जयकार !
जूझ के जीने मरने वालों का ही  धाम बना है गढ़ कुंडार !
तभी तराइन की भूमि पर गौरी ने दे दी ललकार !
क्षमा दान पा गीदड़ ने फिर सिंहों पर कर दीन्हा वार !
रणसींगा बज उठा युद्ध का भूमि तराइन में ललकार !
हिंदी हिन्दू हिंद के रक्षक कूंद पड़े रण ले तलवार !
हुआ युद्ध तब महा भयंकर बिजली सी चमकी तलवार !
लावा फूट पड़ा आँखों का बनकर लोहू पी असिधार !
हा पत्नातुर हुआ बिधाता सर्व खर्व का दाता आज !
वीर प्रश्वनी भू पर टूटी गद्दारी की भरकम गाज !
प्रथ्वीराज छले गए रणमें हतप्रभ राह गया वीर समाज !
हाय तराइन चींख पड़ी साँपों से कैसे बंध गया बाज !
लेकिन जाने से पहले वो करतब दिखा गए चौहान !
बिन आँखों के तीर चलाकर मार गिराया था सुल्तान !
क्षात्र धर्म को किया कलंकित जयचन्द्र ने बनकर गद्दार !
अपने घर में आग लगाकर कौन बना है सूबेदार !
गद्दार के संग गद्दारी कर दी पीठ में घौंपी थी तलवार !
घर के भीतर फूट हुयी तो बनी मुसल्लों की सरकार !
त्राहिमाम कर उठा सनातन देख मुसल्ला अत्याचर !
स्वर्ण सुंदरी के लोभी वे मर्यादा पर करते वार !
मित्र सखा संरक्षक छीना अनहोनी ने कर प्रहार !
ना हुए निराश खेत सिंह जी करते रहे वार पर वार !
दिल्लीपति का शोक मना ले इतना समय नहीं था पास !
क़तर द्रष्टि देख रही थी उनकी और सभी की आस !
राष्ट्र धर्म सर्वोच्च मानकर हिन्दू शासन दिया करार !
खंड जुझौती राज्य बनाया जन जन को सौंपी तलवार !
एक जुझारू नीति बनाकर रक्कस का कर दिया प्रसार !
सीमा को निज पुत्र सौंप कर शिशु को रक्षक दिया करार !
नारी राष्ट्र  ध्वजा भारत की निर्बल हमें नहीं स्वीकार !
वीर प्रश्वनी माताएं भी शस्त्र करें अब अंगीकार !
खड्ग थमा दी पुरुषों को देकर सीमा का अधिभार !
और खंगोरिया महिलाओं को  दुर्गा शक्ति का अवतार !
सामंत मित्र और सैन्य मिलकर संघ बनाया तब खंगार !
जुझौती खंड हित जूझा है जो खंग आरोति वह खंगार !
राष्ट्र धर्म के हित चिंतन को संघ बनाया था खंगार !
वेत्रवती से चम्बल तक फैली वीर खंगारों की सरकार !
धर्म प्रिय थे रा खेत सिंह किया धर्म का बहुत प्रसार !
मां गजानन शक्तिपीठ मंदिर बनवाया गढ़ कुंडार !
स्वाभिमान और देश की खातिर खंग अंग जो करते धार !
विजय सदा उनकी ही चेरी जो दुश्मन पर करते वार !
सदा समर में जीती शक्ति नहीं सुहाए हैं मनुहार !
यदि समर से मुह मोड़े तो उस शासन को है धिक्कार !
राष्ट्र धर्म और क्षात्र धर्म का पाठ पढ़ा गए हैं महाराज !
विजय पराजय ना लख जुझौ यही सिखा गए  हैं महाराज ! 
जब तक नीर बहे बेतवा साक्षी जब तक गढ़ कुंडार !
वीर ! दिवाकर गाथा गए यूँ ही तेरी जय जय  खंगार !!!!
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जय सौराष्ट्र --- जय गिरनार !!!
जय जुझौती----- जय कुंडार!!!

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कृति
अशोक सूर्यवेदी एड. 
मऊरानीपुर ( झाँसी )