अयं मे हस्तो भगवानयं मे भगवत्तर:
अयं मे विश्वभेषजो अयं शिवाभिमर्शन:
ऋग्वेद की इस पवित्र ऋचा का अर्थ है की मेरा यह हाथ ऐश्वर्यवान भगवान् है यह मेरा दूसरा हाथ और भी ऐश्वर्यवान है। यह मेरा हाथ सभी रोग-व्याधियों को औषधि के समान दूर करने वाला है। अर्थात ये मेरे दोनों हाथ जीवन के सभी दुख-दैन्य दूर कर सकते हैं। ये मेरे हाथ सुखद स्पर्श वाले हैं, यानी सुखदायी हैं .
इसी प्रकार एक अन्य श्लोक :-
कराग्रे बसते लक्ष्मिः , कर मध्ये सरस्वती,
करमूले तु गोविन्दः , प्रभाते करदर्शनम,
अर्थार्त हाथ के अग्रिम भाग में माता लक्ष्मी मध्य में सरस्वती और जड़ के स्थान पर स्वम भगवान् गोविन्द का निवास है इसलिए प्रभात काल में अपने हाथ का दर्शन करना चाहिए !
दोनों ही हाथ में भगवान की उपस्थिति का वर्णन करते है और वैसे भी हाथ ही हमारे अधिकतर कार्यो का संपादन करते है इसीलिए कहा जाता है अपना हाथ जगन्नाथ !
अशोक सूर्यवेदी