Saturday, August 12, 2017

इंसेफेलाइटिस :- अपनी भी तो कुछ जिम्मेवारी तय करें

खबरिया चैनल , अखबार , सोशल मिडिया के शूरमा और राजनैतिक गलियारों के पुरोधा बीते दिनों गोरखपुर में इंसेफेलाइटिस  बच्चों की मौत पर व्यथित हैं ! गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज में इंसेफेलाइटिस से बच्चों की मौत की खबर एक बार फिर 'सुर्खियां' बनी है. हम 'सुर्खियां' इसलिए कह रहे हैं क्योंकि गोरखपुर समेत पूरे पूर्वांचल में हर साल इस बीमारी के सैंकड़ों बच्चे शिकार हो जाते हैं. लेकिन मौत की 'चीखें' कभी-कभी ही खबर या राजनीति के लिए मुद्दा बन पाती है सत्तापक्ष और विपक्ष एक दूजे पर हमलावर हैं और हम केवल राजनीती पर मौतों को थोपकर मुंह नहीं मोड़ सकते हमें अपनी भी जिम्मेवारी तय करनी होगी !

गोरखपुर के BRD मेडिकल कॉलेज में साल 2012 से 11 अगस्त 2017 तक करीब 3 हजार बच्चों की मौत हुई है, इनमें से ज्यादातर की मौत इंसेफेलाइटिस के कारण से ही हुई है ! पूर्वांचल का इलाका इस बीमारी की चपेट में है पिछड़े पूर्वांचल में बाबा राघवदास मेडिकल कॉलेज पूर्वांचल के १३ और बिहार के समीपवर्ती ६ जिलों के मासूमों के लिए इस जानलेवा बीमारी से लड़ने का एकमात्र सहारा है गोरखपुर का बाबा राघव दास मेडिकल कॉलेज, आसपास के दूसरे जिलों के लिए एकमात्र सहारा है.  
इस बीमारी से यहां के बच्चों का उपचार करने के लिए गोरखपुर स्थित बाबा राघवदास मेडिकल काॅलेज में 100 बेड का अलग से इंसेफेलाइटिस वार्ड बनाया गया है। डा़ॅ काफिल खान ने बताया कि दूषित पानी और मच्छर के काटने से फैलने वाली यह बीमारी 1978 में कई देशों में दस्तक दी थी लेकिन अधिकतर देशों ने टीकाकरण और दूसरे प्रयासों से इस बीमार पर काबू पा लिया। लेकिन पूर्वांचल में यह घटने की बजाय हर साल बढ़ रही है।
इंसेफेलाइटिस वार्ड में हर महीने भर्ती होने वाले मरीजों का आंकड़ा देते हुए उन्होंने बताया कि अगस्त से लेकर अक्टूबर तक इस बीमारी का प्रकोप तेजी से बढ़ता है़ आम दिनों में रोजाना एक से लेकर दो केस आते हैं वहीं अगस्त आते ही यह आंकड़ा सैकड़ों गुना बढ़ जाता है। पिछले साल अगस्त में यहां पर 418 बच्चे भर्ती हुए जिसमें से 115 बच्चों की मौत हो गई जबकि दिसंबर 2016 में 134 बच्चे भर्ती हुए ओर इसमें से 46 की मौत हो गई।
बात अगर इस साल की करें तो जनवरी 2017 से लेकर अभी तक 488 बच्चे भर्ती हुए इसमें से 129 बच्चों की मौत हो गई। जिससें शुक्रवार को आक्सीजन की कमी से मरने वो बच्चों की संख्या को शामिल नहीं किया गया है।
इंसेफेलाइटिस बीमारी को लेकर पूर्वांचल में राजनीति भी खूब हुई यहां पर होनी वाली बच्चों की मौत हर साल सुर्खियां भी बनी। गोरखपुर से पांच बार बीजेपी सांसद रहे और प्रदेश की बागडोर संभाल रहे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से लेकर यहां के स्थानीय जनप्रतिनिधियों ने समय-समय पर इसको लेकर आवाज उठाई लेकिन नतीजा वहीं ढाक के तीन पात रहा।
प्रदेश बीजेपी की सरकार बनने पर योगी आदित्यनाथ भी इस बीमारी की रोकथाम के लिए कुछ नहीं कर पाए वहीं सपा सरकार में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने भी इसके लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया। स्थिति यह है कि यहां पर एक ही बेड पर जहां तीन-तीन इंसेफेलाइटिस से पीड़ित बच्चों को रखना पड़ता है वहीं यहां पर काम कर रहे नर्स और कर्मचारियों को समय से वेतन तक नहीं मिलता।
हर साल जुलाई से लेकर दिसंबर तक काल बनने वाली यह बीमारी एक मादा मच्छर क्यूलेक्स ट्राइटिनीओरिंकस के काटने से होती है। इसमें दिमाग के बाहरी आवरण यानी इन्सेफेलान में सूजन हो जाती है। कई तरह के वायरस के कारण ब्रेन में सूजन के कारण हो सकते हैं। कई बार बॉडी के खुद के इम्यून सिस्टम के ब्रेन टिश्यूज पर अटैक करने के कारण भी ब्रेन में सूजन आ सकती है। यह बीमारी सबसे पहले जापान में 1870 में सामने आई जिसके कारण इसे ‘जापानी इंसेफेलाइटिस’ कहा जाने लगा। विश्व स्वास्थ्य संगठन के 2014 के आंकड़ों के अनुसार, दुनिया में विशेष तौर पर सुदूर पूर्व रूस और दक्षिण पूर्व एशिया में इस रोग के कारण प्रति वर्ष करीब 15 हजार लोग मारे जाते हैं। इस बीमारी की सबसे खराब बात ये है कि कई केस में मरीज बच जाने के बाद भी पैरालिसिस या कोमा के शिकार हो जाते हैं , मतलब मरीज बच भी जाए तो जिंदा ही रहता है, जी' नहीं पाता.
इंसेफेलाइटिस जानलेवा बीमारी है, इससे या तो मौत होती है या आजीवन विकलांग होने की संभावना होती है।
यह बीमारी मच्छर, सूअर, दूषित पानी, खुले में शौच करने से फैलता है।
इस बीमारी के मच्छर शाम के समय घर से बाहर सबसे ज्यादा काटते हैं।
शाम को खुले में शौच करने से इनके काटने की संभावना ज्यादा होती है।
इस बीमारी के रोगाणु पानी में मल के मिलने से फैलते हैं।
खुले में शौच करने से इसके रोगाणुओं का प्रसार होता है।
हैण्ड पंपो के आसपास इकट्ठा पानी में इसके रोगाणु ज्यादा पनपते है।
ऐसे कर सकते है रोकथाम
मच्छरों के काटने से बचे। शाम के समय बच्चों को बाहर लेकर कम निकले और बैठे।
रात में सोते समय मच्छरदानी का प्रयोग करें।
खुले में और सड़क के किनारे शौच न करें।
नजदीक के स्वास्थ्य केन्द्रों पर बच्चों को जेई का टीका आवश्य लगवाएं।
सूअर और बाड़ों को आबादी से दूर रखे।
खाने के पहले और शौच के बाद हाथ को सफाई से धोएं।
पीने के पानी में क्लोरिन गोली का उपयोग करें।
क्लोरिन गोली को कागज में न रखे, दवा बेअसर हो जाती है।
दूषित जल (कम गहरे वाले हैंडपंप, तालाब, कुएं का पानी आदि) का सेवन न करें।
पीने के लिए इण्डिया मार्का हैण्डपंप 2 का प्रयोग करें।
गोलगप्पे, बर्फ के गोले, जूस, ठंठई, गीली हरी चटनी आदि को खाने के पहले पानी की शुद्धता के बारे में जानकारी कर लें।
कच्चे कंद मूल, सब्जियों, फलों को खाने के पहले अच्छी तरह से धो लें।
घर के आस-पास झाड़ियों को उगने न दें।
घर के अन्दर चूहों को न आने दे।
शाम के समय नंगे बदन बाहर न बैठे और न निकले।
नीचे जमीन पर और घास पर नंगे बदन न लेटे।
प्रोटीन युक्त आहार का सेवन करें। 
और ये सब काम हमें ही करने होंगें कोई योगी या अखिलेश अकेले हमें या हमारे बच्चों को  सुरक्षित नहीं रख सकते !