Friday, January 8, 2016

क्रान्तिकारी नट

नट

नट (अंग्रेजी : Nat caste) उत्तर भारत में हिन्दू धर्म को मानने वाली एक जाति है जिसके पुरुष लोग प्राय: बाज़ीगरी या कलाबाज़ी और गाने-बजाने का कार्य करते हैं तथा उनकी स्त्रियाँ नाचने व गाने का कार्य करती हैं। इस जाति को भारत सरकार ने संविधान में अनुसूचित जाति के अन्तर्गत शामिल कर लिया है ताकि समाज के अन्दर उन्हें शिक्षा आदि के विशेष अधिकार देकर आगे बढाया जा सके। बुंदेलखंड में नट जाति अपने साहसिक कारनामों के लिए प्रख्यात रही है 1857 की क्रांति में नटों ने खंगारों के साथ राजा मर्दन सिंह के अभियान में बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया इस कारण नट भी अंग्रेजों की नजर में खंगारों की भाँति खटक गए और अंग्रेजी हुकूमत ने उनके दमन के लिए 1871 में क्रिमिनल ट्राइब्स एक्ट बनाकर नटों को भी ज़रायम पेशा घोषित किया बुंदेलखंडी में इन जातियों के दुस्साहसिक कारनामों को इंगित करती एक कहावत मशहूर है "कुत्ता बिल्ली बन्दर - नट खंगार और कंजर"
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नट शब्द का एक अर्थ नृत्य या नाटक (अभिनय) करना भी है। सम्भवत: इस जाति के लोगों की इसी विशेषता के कारण उन्हें समाज में यह नाम दिया गया होगा। कहीं कहीं इन्हें बाज़ीगर या कलाबाज़ भी कहते हैं। शरीर के अंग-प्रत्यंग को लचीला बनाकर भिन्न मुद्राओं में प्रदर्शित करते हुए जनता का मनोरंजन करना ही इनका मुख्य पेशा है। इनकी स्त्रियाँ खूबसूरत होने के साथ साथ हाव-भाव प्रदर्शन करके नृत्य वगायन में काफी प्रवीण होती हैं।
नटों में प्रमुख रूप से दो उपजातियाँ हैं-बजनिया नट और ब्रजवासी नट। बजनिया नट प्राय: बाज़ीगरी या
कलाबाज़ी और गाने-बजाने का कार्य करते हैं जबकि
ब्रजवासी नटों में स्त्रियाँ नर्तकी के रूप में नाचने-गाने का कार्य करती हैं और उनके पुरुष या पति उनके साथ साजिन्दे ( वाद्य यन्त्र बजाने) का कार्य करते हैं।