Sunday, April 18, 2010

KHANGAR KHYAL

खंगार ख्याल


हे गढ़कुंडार ! तुझ पर निसार, हैं हम खंगार, जय बोलेंगे 


 दोहा :-काशी और प्रयाग है , वीरों की यह भूम !
गाथा गाने बैठता , माता के पद चूम !!


हे  गढ़कुंडार !  तुझ पर निसार, हैं हम खंगार, जय बोलेंगे !
महिमा अपार, तेरे बंद द्वार, हम कलम धार, अब खोलेंगे !! 

हे कीर्तिवान, युग के निशान,
 जग जाये जान, गाथा तेरी !
वीरों की शान, करता बखान,
 सुन लगा ध्यान,  कविता मेरी !

धार हाँथ शीश, ममता में बीस ,
दे दे आशीष, माँ गिरवासन !
गढ़ की वो टीस, बनकर फनीस,
लिखवा दे रीझ हे माँ गाजन ! 

क्षत है कुडार ,हम करें श्रंगार ,बनकर खंगार, सच  बोलेंगे !
महिमा अपार तेरे बंद द्वार हम कलम धार  अब खोलेंगे  !! 

महाराजा खेत, रैयत समेत,
 थे गए चेत, दुश्मन आये !
जन खड्ग देत, जय वचन लेत,
बांधत है सेत, गण हर्षाये !

जन खड्ग धार, बनते खंगार, 
इस गढ़ के द्वार दीक्षा पाए !
धन बल अपार , जन गण अगार,
वैरिन खों मार, रण में छाये !
  
नारी का  मान , वीरों की शान , लेकें क्रपान ,  हम बोलेंगे !
महिमा अपार , तेरे बंद द्वार , हम कलम धार, अब खोलेंगे !!

तेरे गढ़ की जाई, केशर सी बाई ,
थी काम आयी, कर जौहर को !
केशर का भाई, विक्रम बरदाई ,
गया रण में ढाई , ज्यों केहर हो !

होकें कुर्बान , राखी थी शान ,
मिट गए भान , तेरी खातिर !
थे मुसलमान, वैरी बीरान ,
कर गए निशान ,वे थे शातिर !

कायर कपूत, दुश्मन के दूत, बने  राजपूत , ना बोलेंगे !
महिमा अपार तेरे बंद द्वार हम कलम धार अब खोलेंगे !!

 अशोक सूर्यवेदी