Friday, September 18, 2020

प्रथम खंगार

 समुद्र से घिरे  निर्जन द्वीप में देव नीरामिरंजन के सम्मुख अकस्मात ही एक दिन देवी अनामिका उपस्थित थीं । देवी अनामिका और देव नीरामिरंजन यानि ऊर्जा के परस्पर दो स्त्रोत याकि पुरुष और प्रकृति ... तो जैसे ही पुरूष प्रकृति से मिलता है तो सृजन घटित होता है तो देव नीरा मिरंजन और देवी की आँखें परस्पर चार हुईं और इन आँखों के संयोग से देवी गर्भवती हो गयीं । ठीक नौ महीने नौ घंटे बाद देवी ने एक कन्या को जन्म दिया जो कि प्रथम खंगार थी । जन्म देते ही देवी को अपनी अपरमित शक्तियों को खोने का डर सताया और उन्होंने उस सद्दजन्मा कन्या को समुद्र में समर्पित कर दिया देव नीरामिरंजन देवी के इस कृत्य को देख रहे थे और वे देवी के इस कृत्य से क्षुब्ध होकर उस सद्द जन्मा कन्या को समुद्र की अतल गहराइयों से बचाकर अपने साथ ले आये और पूरे मनोयोग से उसका पालन पोषण करने लगे ..देव नीरा मिरंजन ने उस कन्या को नाम दिया कंकाली  दिन महीने साल बीते और कंकाली जब बारह वर्ष की थी तब वह स्नान के लिए रोज की भांति समुद्र में गयी वह इस बात से अनभिज्ञ थी कि समुद्र में देव समूह विहाररत है उसने जैसे ही खुद को अनावृत्त कर समुद्र में स्नान के लिए प्रवेश किया कि देव समूह की दृष्टि में आ गयी  देव समूह नग्न कंकाली को देख ठहाका मारकर और जोर जोर से तालियाँ पीटकर हँसने लगे देव समूह की हरकत से क्षुब्ध कंकाली अपने घर लौट आई ... कंकाली के पिता देव नीरा मिरंजन जो की रोजाना उसे मुग़री के फूलों से तोलते थे उन्होंने आज क्षुब्ध कंकाली को गर्भवती पाया .. क्षुब्द कंकाली ने खुद को अपवित्र मानते हुए अपने पिता से गृह त्याग करने की इजाजत मांगी और घर से निकल कर अज्ञात दिशा में निकल पड़ी ...नौ माह लगातार चलते चलते कुरुवा द्वीप के जंगल में जा पहुंची जहाँ उसने एक साज के वृक्ष की छांव तले अपने बच्चों को जन्म दिया जन्मना शिशुओं की संख्या अत्यधिक थी  किन्तु उनमें से प्रमुख गोंड देव कोया देव केन्जू देव कांगजु देव आदि  हुए प्रथम खंगार कंकाली जनित कोया से खंगार   गोंड देव से गोंड और विभिन्न कंकाली पुत्रों से विभिन्न जातियों की उत्पत्ति हुई ....... कहते हैं कि कंकाली ने भी अपने पुत्रों की देख रेख नही की और वह उन्हें कुरुवा द्वीप के जंगल मे छोड़कर वापिस पितृ देव नीरा मिरंजन के पास लौट गई तब आदिदेव शंकर और पार्वती की नजर इन बच्चों पर पड़ी और इन्होंने ही इनका पालन पोषण किया कोया की खंगार संताने मध्य भारत सहित तमाम देशों तक फैल गयी 13000 पुरानी सुमेरियन सभ्यता का विस्तार भी कोया की खंगार संतानों ने ही किया खंगार दुनिया भर में विविध नामों से खुद को जानते हैं यथा खंगार खंडायित खडार छावा पर दुनिया उनको सुमेरियन नाम से जानती है !
 यह मिथ कथा 12 वीं शताब्दी में क्रिस्टोफ वॉन द्वारा अडीलवाद में गढ़ी गयी थी जो मुझ तक मेरे ब्रिटिश मित्र जोसेफ़ अम्योट पडजन द्वारा पहुंची ....





Saturday, July 18, 2020

कुत्ते का बोझ

जा रही थी बैलगाड़ी ,जुते थे बैल, हाँक रहा था किसान ,लदा था धान्य ! था किसान का कुत्ता ,चल रहा था साथ ... कुत्ते चला ही करते हैं मालिक के पीछे ..क्या अचरज की बात 😉 ...बदौलत बैलों की निर्देशन किसान का  जा रही थी गाड़ी ..धड़क धड़क ...  रास्ते में खड़े थे हम खामखा ... देखा माजरा ...गाड़ी पर किसान... गाड़ी में धान्य ... और जुते हुए बैल ..हम चकराए ... क्योंकि सीन थोड़ा और था बैलगाड़ी के नीचे हांफ रहा कुत्ता था ...और हम ठहरे पढ़े लिखे आदमी यानि बुद्धिजीवी  .. और ऊपर से बुद्ध के अनुगामी ... और शाक्यसिंह ने सिखाया है कि "सब जीव जगत के समान हैं" ... सो  सो सो सो  हमने कुत्ते को किया प्रणाम और पूँछा हे श्रीमान  ... बित्थे भर की जीभ निकाले आप काहे हांफ रहे हो जबकि गाड़ी की छांव में खड़े हो ..?? ...  भौंकने लगे ...भड़कने लगे .. गनीमत रही कि आदर के वशीभूत थे सो काटने नही दौड़े ... हमने तुरंत जोड़ लिए हाथ .. और जताते हुए आदर पूँछा भौंकने का कारण ... फिर जो बताया कुत्ता जी ने सुनकर आप हो सकते हैं हैरान ... हालांकि हमने बचाई अपनी जान ... कहा था श्रीमान ने  ..बने फिरते हो बुद्धिजीवी और हो एक नम्बर के बुद्धू अकल है नही और खड़े हो गए सामने चोंच लड़ाने .. ये बैलगाड़ी ,,,इसमें लदा धान्य ,, और ऊपर बैठा किसान ... और जुएँ में जुते दो बैल  ... और सबके नीचे खड़ा मैं ... इतना भार उठाये हूँ ... और तुम मिस्टर खामखा बुद्धिजीवी ! हमसे कर रहे हो सवाल कि बित्थे भर की जीभ निकाले काहे हांफ रहे हो ........ ???  फिर भाग लिए हम .. कुत्तों का क्या भरोसा .. साले अनपढ़ अनाड़ी काट लें तो 😉 .. और का ...😆😆😆😆😆