Thursday, December 1, 2011

महाराजा खेत सिंह खंगार

  "महाराजा खेत सिंह खंगार और जुझौती का राज्य "
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महाराज खेत सिंह खंगार

जुझौती खंड में स्वतंत्र हिन्दू खंगार राज्य के अधिष्ठाता राष्ट्र धर्म तथा जुझारू संस्कृति के प्रणेता खेत सिंह खंगार  विंध्य प्रदेश के गणाधिपति थे  1182  में जब प्रथ्वीराज ने महोबे पर आक्रमण किया तो खेत सिंह को समर का सहभागी बनाया इस युद्ध में खेत सिंह खंगार का अप्रितम  शौर्य चंदेली खड्ग झेल न सकी और और जैजाक भुक्ति राज्य से चंदेल गौरव का सूर्य सदा सर्वदा के लिए अस्त हो गया ! बैरागढ़ के मैदान में लड़े गए इस युद्ध में उदल मारा गया! आल्हा परमाल सहित मैदान छोड़ कर कालिंजर चला गया ! महोबा जीत लिया गया ! प्रथ्वीराज ने विजय का श्रेय खेत सिंह को दिया और उनकी मातहती में विजित प्रदेश का अधिपत्य सौंपकर दिल्ली लौट गए !खेत  सिंह ने राज्य प्रबंधन के लिए जुझारू नीतियों को सर्वोच्च मानकर राष्ट्र धर्म का सृजन किया अपनी जुझारू नीतियों के चलते उन्होंने चंदेल कालीन जेजाभुक्ति राज्य का  जुझौती नामकरण किया !खजुराहो, कालिंजर, महोबा और कुंडार जुझौती के प्रमुख नगर थे ! प्रथ्वीराज चौहान के संरक्षण एवं खेत सिंह महाराज के नेतृत्व में जुझौती  एक ताकतवर प्रदेश के रूप में उभर कर शक्ति केंद्र बन रहा था तभी मोहम्मद गौरी के आक्रमण में प्रथ्वीराज चौहान की पराजय होने से जुझौती के उद्देश्यों को बड़ा भारी धक्का लगा किन्तु खेत सिंह महाराज ने  जुझारू नीतियों के परिपेक्ष्य में जुझौती को स्वतंत्र हिन्दू राज्य घोषित कर मुस्लिम सल्तनत को चुनौती दे दी ! इधर राज्य की सुरक्षा, वीर संतति की उत्पत्ति, राष्ट्रीय भावनाओं के उदय ,पतितों के उत्थान एवं सम्मान के लिए अनेकानेक परम्पराएं और संस्कार जुझौती के जनजीवन में डाली जो आज तक विद्यमान हैं ! महाराज खेत सिंह खंगार ने चंदेल काल से चली आ रही नारी की भोग्या स्थिति को समाप्त कर उसे राष्ट्र ध्वजा के रूप में स्वीकार कर पूज्या का दर्जा दिया ! उन्होंने वीर प्रसवनी माताओं को विविध रूपों में शश्त्र थमा कर आत्म रक्षित किया खंगौरिया जहां महिलाओं के लिए अनिवार्य आभूषण हुआ तो पुरुषों  को भी खंगधारी बना दिया राज्य में धीवर से लेकर ब्रह्मण तक और जमादारों  से लेकर राजपूतों तक सभी वीरों और वर्गों को सम्मान मिला जिसकी छाप आज भी समारोहों में देखने को मिलती है ! जुझौती का बच्चा बच्चा सैनिक हो इसके निमित्त जन्म के बाद ही सीमा पर लेजाकर एक संस्कार की नीव डाली जो आज भी रक्कस के रूप में विद्यमान है !जुझौती में वीर बच्चे पैदा हो सेना को वीर सैनिक मिले इसके लिए जगदम्बा भवानी को बीजा सेन नाम देकर पूजा गया तो वहीं गजानन माता रक्षिका माई कालका  माई शक्ति भैरव आदि देव देवियाँ रण देवता के रूप में सुपूजित हुए रण के शहीदों को सामान आदर  भाव  से पूजा गया जो आज भी  गाँव  गाँव में स्थापित  हैं ! महाराज खेत सिंह खंगार ने अपनी जुझारू नीतियों के चलते राज्य के सामंतों ,सैनिको ,राजनैतिक मित्रों और राजपुरोहित ब्राहमणों के सहयोग से "खंग आरोति इति खंगार " की अवधारणा पर खंगार संघ की स्थापना की और सभी को खंगार भूषण  से विभूषित किया! जुझौती के बच्चे में राष्ट्र धर्म के लिए सर्वस्व न्योछावर करने की भावना कूट कूट कर भरी हुई थी ! महाराज खेत सिंह खंगार की इन्ही जुझारू नीतिओं के कारण दिल्ली सल्तनत कभी जुझौती की और वक्र द्रष्टि से देखने का साहस नहीं कर सकी ! महाराज खेत सिंह खंगार के उत्तराधिकारियों ने जूझौति पर लगभग २०० वर्षों तक चुनौतीपूर्ण शासन किया !जुझौती की खंगार सत्ता से विधर्मी शासक सदा आतंकित रहे किन्तु दुर्भाग्य, अपने ही सामंतों(जो खंगार नहीं थे ) की गद्दारी   से खंगार राजवंश छला गया ! और वीर जुझौती से खंगार राजवंश का अंत हो गया किन्तु आज भी लोक कथाये, लोक परम्पराएं, लोक साहित्य और खंगार   भूपतियों की अमर कृति गढ़ कुंडार बड़े ही गौरव से खंगारों की कीर्ति का गान करते हैं ......................... ....."जय जुझौती -जय खंगार "