Sunday, December 23, 2018

हाँ मैं यौद्धेय हूँ , मैं खङ्गार हूँ !!

अग्रन्य सुत्त के दिघ्घ निकाय का किरदार हूँ
हाँ  मैं यौद्धेय हूँ ,  मैं खङ्गार हूँ  !

न किसी ब्रह्म के पेट से  जन्मा , न छाती और भुजाओं से 
न अनल यज्ञ से प्रगट हुआ   ,  न ही शैल  शिराओं से 
मानव गति की प्रगति हेतु  ,  मैं जन रक्षण का जिम्मेवार हूँ 
हाँ मैं यौद्धेय हूँ ,  मैं खङ्गार हूँ  !!

जन रंजन से मैं राजन , क्षत्रिय हूँ क्षति रक्षण से 
खंगार हुआ हूँ असिधारण की कला विलक्षण से 
मैं देश धरम के अरियों पर  केवल  बज्र प्रहार  हूँ
हाँ मैं यौद्धेय हूँ ,  मैं खङ्गार हूँ  !!

मैं नाम, ग्राम, मैं हिमचोटि, मैं संज्ञा, मैं  सर्वनाम
मैं ज्वालामुखी,  हूँ  भूगर्भ का ,क्रोध तमाम 
सिमटूँ तो राख मात्र  ,विस्तृत अंतरिक्ष का गार हूँ
हाँ  मैं यौद्धेय हूँ , मैं खङ्गार हूँ  !!

मैं वीरों में श्रेष्ठ सुपूजित हूँ , मेरी कीर्ति के अनंत नाम
मैंने जहाँ जहाँ पग धरा  , वे वीरों के पूज्य धाम
मैं जल में थल में नभ में सबका श्रृंगार हूँ
हाँ मैं यौद्धेय हूँ , मैं  खङ्गार हूँ !!

कृति
अशोक सूर्यवेदी
मऊरानीपुर

Tuesday, July 17, 2018

रघबर जेल झाँसी

उनका नाम था रघबर , रखा तो रघुवर होगा पर जो चला सो चला रघबर ही चल पड़ा ! जाति के अहीर थे अहीर होते ही सीधे सादे और सरल थे सो रघबर भी ठेठ अहीर बिल्कुल सीधे सादे सरल और सच्चे ! अंग्रेजी शासन में एक मामले में फंस गए या फंसा दिए गए जो भी हो झाँसी में जेल काट रहे थे और जेल में ही एक रात सपने में देखा कि उनके घर भैंस ने बच्चा जना   है और वे उसकी तेली खा रहे हैं ! रघबर के मुंह मे तेली की मिठास घुल गयी चटक कर उठे जुगत लगा कर जेल की दीवार पर जा चढ़े और और धम्म से कूंद फांद कर घर का रास्ता पकड़ लिया ! घर था मऊरानीपुर के पड़ौसी गांव रूपाधमना में , उन दिनों आवागमन के साधन ऐसे तो न थे जैसे आज हैं और जैसे थे वैसे भी रघबर को रात के सन्नाटे में तो नसीब न होने थे  , भैंस और भैंस की तेली की लगन ऐसी कि बाबा तुलसीदास गुसाईं मायके गयी रत्ना से मिलने चले हों , लम्बी  दूरी , सुनसान रास्ता,  घुप्प अंधेरा और हहराती हुई बेतवा माता   की अथाह जलराशि रघबर के हौसले न डिगा सके  राह की दुश्वारियों को पैरों पैर नापते तैरते धमना जा धमके , देखा भैंस #बियाने ही वाली है ! पूरे मनोयोग से भैंस की सेवा सुश्रुषा की भैंस के बच्चे को पोंछपाँछ कर खड़ा किया भैंस ने उसे चाटा चूमा बच्चा अपने पैरों खड़ा हूँ , तो भैंस को अजवाइन की धूनी दी , मैथी मिला गुड़ खिलाया और उसकी जर (नाल) को साँप की बामी में डाल , बच्चे को उसके हक़ का थन उसे देकर आप बाल्टी लगा भैंस को दुहने बैठे थनों के निचोड़ने से निकली दोधारी सेटों की छन्न छन्न और फिर सर्र सर्र के मधुर संगीत ने #सार को संगीतमय कर लिया बाल्टी भरी ...धनी महाराज और कारसदेव को भोग लगाया फिर पतीला गोबर के उपलों से ज्वलित चूल्हे पर चढ़ा नारियल की गिरी , सोंठ काली मिर्च , और उपलब्ध मेवा मखानों के पुट से बनी स्वादिष्ट  तेली ठंडी की गई ...चावल के साथ फिर रोटी के साथ फिर कई मर्तबा कटोरा भर भर यूँ ही चटखारे लेकर तेली का भोग लगा , 5 दिन तक तेली का भरपेट भोगलगा रघबर अपनी भैंस की सेवा सुश्रुषा कर वापिस झाँसी जेल के दरवाजे जा पहुंचे ... संतरी से कहा मुझे अंदर ले लो , संतरी ने न पहचाना , न कोई परवाना न कोई आदेश कैसे अंदर ले और क्यों ले , पूँछा कौन हो भाई क्यों आना है अंदर ?..बोले हम हैं रघबर हम अंदर ही थे ...जेलर आया शिनाख्त हुई भागा कैदी लौट आया , जेल प्रशासन परेशान रहा कैदी गया तो कहां गया पूँछा कहाँ चले गए थे कैसे गए थे क्यों गए थे ... ईमानदारी से जबाब मिला #भैंस_बियाने_ती_बररौटी_आई_तेली_खावे_गए_ते ...जेलर रघबर की ईमानदारी और सादगी पर मंत्रमुग्ध घोषणा कर दी ऐसा सज्जन और ईमानदार आदमी इसकी ईमानदारी  मिसाल बने इसलिए आज से इस जेल को इस ईमानदार सज्जन कैदी के नाम पर रघबर जेल के नाम से जाना जाएगा और वाकायदा जेल को गजट में रघबर जेल घोषित किया गया...!!
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शब्द संयोजन

अशोक सूर्यवेदी

Monday, May 28, 2018

रघबर जेल झाँसी

उनका नाम था रघबर , रखा तो रघुवर होगा पर जो चला सो चला रघबर ही चल पड़ा ! जाति के अहीर थे अहीर होते ही सीधे सादे और सरल थे सो रघबर भी ठेठ अहीर बिल्कुल सीधे सादे सरल और सच्चे ! अंग्रेजी शासन में एक मामले में फंस गए या फंसा दिए गए जो भी हो झाँसी में जेल काट रहे थे और जेल में ही एक रात सपने में देखा कि उनके घर भैंस ने बच्चा जना   है और वे उसकी तेली खा रहे हैं ! रघबर के मुंह मे तेली की मिठास घुल गयी चटक कर उठे जुगत लगा कर जेल की दीवार पर जा चढ़े और और धम्म से कूंद फांद कर घर का रास्ता पकड़ लिया ! घर था मऊरानीपुर के पड़ौसी गांव रूपाधमना में , उन दिनों आवागमन के साधन ऐसे तो न थे जैसे आज हैं और जैसे थे वैसे भी रघबर को रात के सन्नाटे में तो नसीब न होने थे  , भैंस और भैंस की तेली की लगन ऐसी कि बाबा तुलसीदास गुसाईं मायके गयी रत्ना से मिलने चले हों , लम्बी  दूरी , सुनसान रास्ता,  घुप्प अंधेरा और हहराती हुई बेतवा माता   की अथाह जलराशि रघबर के हौसले न डिगा सके  राह की दुश्वारियों को पैरों पैर नापते तैरते धमना जा धमके , देखा भैंस #बियाने ही वाली है ! पूरे मनोयोग से भैंस की सेवा सुश्रुषा की भैंस के बच्चे को पोंछपाँछ कर खड़ा किया भैंस ने उसे चाटा चूमा बच्चा अपने पैरों खड़ा हूँ , तो भैंस को अजवाइन की धूनी दी , मैथी मिला गुड़ खिलाया और उसकी जर (नाल) को साँप की बामी में डाल , बच्चे को उसके हक़ का थन उसे देकर आप बाल्टी लगा भैंस को दुहने बैठे थनों के निचोड़ने से निकली दोधारी सेटों की छन्न छन्न और फिर सर्र सर्र के मधुर संगीत ने #सार को संगीतमय कर लिया बाल्टी भरी ...धनी महाराज और कारसदेव को भोग लगाया फिर पतीला गोबर के उपलों से ज्वलित चूल्हे पर चढ़ा नारियल की गिरी , सोंठ काली मिर्च , और उपलब्ध मेवा मखानों के पुट से बनी स्वादिष्ट  तेली ठंडी की गई ...चावल के साथ फिर रोटी के साथ फिर कई मर्तबा कटोरा भर भर यूँ ही चटखारे लेकर तेली का भोग लगा , 5 दिन तक तेली का भरपेट भोगलगा रघबर अपनी भैंस की सेवा सुश्रुषा कर वापिस झाँसी जेल के दरवाजे जा पहुंचे ... संतरी से कहा मुझे अंदर ले लो , संतरी ने न पहचाना , न कोई परवाना न कोई आदेश कैसे अंदर ले और क्यों ले , पूँछा कौन हो भाई क्यों आना है अंदर ?..बोले हम हैं रघबर हम अंदर ही थे ...जेलर आया शिनाख्त हुई भागा कैदी लौट आया , जेल प्रशासन परेशान रहा कैदी गया तो कहां गया पूँछा कहाँ चले गए थे कैसे गए थे क्यों गए थे ... ईमानदारी से जबाब मिला #भैंस_बियाने_ती_बररौटी_आई_तेली_खावे_गए_ते ...जेलर रघबर की ईमानदारी और सादगी पर मंत्रमुग्ध घोषणा कर दी ऐसा सज्जन और ईमानदार आदमी इसकी ईमानदारी  मिसाल बने इसलिए आज से इस जेल को इस ईमानदार सज्जन कैदी के नाम पर रघबर जेल के नाम से जाना जाएगा और वाकायदा जेल को गजट में रघबर जेल घोषित किया गया...!!
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शब्द संयोजन

अशोक सूर्यवेदी