Sunday, September 29, 2019

लतीफा

अकबर  और बीरबल 

एक थे अकबर महान और महान क्यों थे यहाँ ये मुद्दा नहीं है ।  जैसे भी थे सरजमीन ए हिन्द के शहंशाह थे।  हुजूर बड़े मजाकिया और लतीफेखोर , कहते हैं हुजुरके दरबार में जीते जागते नौ रत्न यानि  नवरत्न  थे और उनमे से एक बीरबल महाराज भी थे।  तो हुआ यूँ कि एक दिन सुबह सबेरे बीरबल हुजूर के  इस्तक़बाल  में जा पहुंचे। दुआ सलाम की रस्मअदायगी के बाद सिलसिला ए बातचीत शुरू  हुआ और हुजूर ने बड़ी कुटिल मुस्कान बिखेरते हुए कहा - बीरबल मैंने आज एक बड़ा विचित्र ख्वाब देखा ।  बीरबल अपना चंट आदमी सट्ट से समझ गया बन्दा दिमाग का गोबर उगलने वाला है सो  पट्ट से बोला  हुजूर मैंने भी ऐसा ही कुछ ख्वाब रात में देखा  .. बादशाह ठहरा बादशाह बोला मैं पहले बोलूंगा । बीरबल को भी मौका मिल गया उसका गोबर उसके मुंह मलने का कहीं बीरबल को कह देता तू बोल तो बेचारा क्या सुनाता खैर जिल्ल ए इलाही शुरू हुए बिल्कुल रामसे ब्रदर्स की फिल्म के नायक की तरह भावभंगिमा बनाते  ... बीरबल मैं  और तुम दोनों जा रहे थे सुन्दर सरोवर के किनारे किनारे  सरोवर में सुंदर कमल तैर रहे थे बड़ी ही बासंती हवा बह  रही थी । अचानक से बिजली कड़की फिर घुप्प अँधेरा हो गया फिर बिजली चमकी मैंने तुम्हे देखा तुम्हारे पर निकल आये थे  और मेरे भी पर निकल आये थे फिर हम दोनों आसमान में उड़ने लगे । अहा बड़ा ही मनोहर दृश्य था आसमान से अपनी धरती का बड़ा मजा आ रहा था हम उड़ते ही जा रहे थे  उड़ते ही जा रहे थे कि कम्बखत फिर बिजली चमकी  और हमारे पंख गायब हो गए  । पंख गायब होते ही हम आसमान से अनजान जगह की ओर गिरने लगे।  गिरने से पहले मैंने देखा जमीन पर एक रसखान है यानि रस  की  खान और उससे कुछ ही दूर एक मलखान  तो बीरबल मैं  गिरने से पहले देखता हूँ कि तुम  मलखान में जा गिरे और मैं रसखान में  जा डूबा  उफ़ कैसा ख्वाब था ये , यार तुम मलखान में जा डूबे तभी मेरी आँख खुल गयी।  मैं तुम्हारे बारे में सोच ही रहा  था कि तुम आगये खैर तुम भी कुछ ख्वाब का कह रहे थे ?  सुनाओ क्या ख्वाब था रात तुम्हारा ?  हुजूर की इजाजत से बीरबल महाराज तुरंत नहले पर पहले  से ही दहला धरे बोल पड़े जहाँपनाह ख्वाब तो बिलकुल  यही था  जो आपने देखा मैं और आप ,वही सरोवर का किनारा और सरोवर में तैरते कमल ,  फिर वही बिजली का कड़कना और हमारे पर निकलना  , फिर आसमान की  वही उड़ान ,  फिर बिजली चमकना और हमारे पर गुल होना और हमारा नीचे  गिरना ,  सबकुछ महाराज वैसे का वैसा ही ...  हुजूर ए  आला का रसखान में और नाचीज का मलखान में डूबना सब वैसे  का वैसा ही।  बादशाह झल्लाया सब वैसा ही तो इसको रिपीट क्यों कर रहा है ? बीरबल बोला   किन्तु हुजूर मेरी आँख नहीं खुली और ख्वाब आगे भी चला  और आगे मैं क्या देखता हूँ  कि मैं मलखान से बाहर निकला और हुजूर रसखान से बाहर आये हम दोनों एक दूसरे की ओर बढे और एक दूसरे को चाटने लगे  जहाँपनाह आपके शरीर पर लगे रास की मिठास  का आनंद ले ही रहा कि कम्बख्त बीबी ने आकर जगा दिया और मैं फ़ौरन तैयार होकर हुजूर के इस्तक़बाल में हाजिर हो गया। .... 

Tuesday, September 3, 2019

आरक्षण में खंगार जाति ... एक अन्वेषण

आरक्षण में खंगार जाति ... एक अन्वेषण

भारत में राजकीय तौर पर दमित वर्ग के उत्थान के  लिए आरक्षण  की व्यवस्था का पहला उदाहरण कोल्हापुर   नरेश शाहू जी महाराज के  शासन में देखने  मिलता है  जिन्होंने सर्व प्रथम सन  1902  में पिछड़े वर्ग से गरीबी दूर करने और राज्य प्रशासन में उनकी हिस्सेदारी सुनिश्चित करने के लिए अधिसूचना जारी की  कालांतर में ब्रिटिश शासन के दौरान जिन  तमाम  महपुरुषों  ने जाति वर्ग भेद की असमानता दूर करने के लिए अथक प्रयास किये  उनमे सबसे बड़ा नाम और योगदान  बाबा साहब डॉ. भीमराव रामजी आंबेडकर का है ! सन 1927 में 7 सदस्यीय ब्रिटिश सांसदों का समूह सर जॉन साइमन के नेतृत्व में भारत में संविधान सुधारों के अध्ययन के लिए भारत आया जिसे साइमन कमीशन के नाम से जाना जाता है !  भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और मुस्लिम लीग के कड़े विरोध के बाबजूद भी डॉ. आंबेडकर अपने  दलित शोषित वर्ग के कल्याण के लिए  कमीशन के सामने प्रस्तुत हुए ! यहीं से भारत में आरक्षण के युग का सूत्रपात  हुआ ! डॉ. आंबेडकर  दलित जातियों के लिए नौकरियों और राजनीति में   विशेष आरक्षण चाहते थे , डॉ. साहब के दलित की परिभाषा में समाज का  वह वर्ग मात्र  ही  शामिल था जो सामाजिक तौर पर सदियों से  छुआ छूत का जबरजस्त   शिकार था जबकि सर साइमन क्रिमिनल ट्राइब्स  आपराधिक जनजातियां  जो की वास्तविक अर्थों में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थीं जिन्होंने 1857 का विद्रोह खड़ा किया जिनके दमन के लिए 1872 में अंग्रेजी हुकूमत ने क्रिमिनल ट्राइब्स एक्ट बनाकर उन्हें अपराधी जाति नामित किया   को  और पर्वतीय जनजातियों को दलित शब्द की परिभाषा में शुमारकर उनके उन्ययन का रास्ता प्रशस्त करने के पक्षधर थे कदाचित डॉ. आंबेडकर को क्रिमिनल ट्राइब्स जिन्हेंआज विमुक्त जाति के नाम से जाना जाता है से कोई सहानुभूति न थी और वह  आरक्षण के लिए सिर्फ अस्यपृश्य जनों को ही पात्र मानते थे किन्तु सर साइमन केआग्रह या कि दबाव को वो टाल सकने में सक्षम न थे तथापि उन्होंने साइमन की उपेक्षा न करते हुए भी इन जातियों की उपेक्षा करने में कोई कोताही न बरती आरक्षण की हक़दार जातियों का  मसौदा उन्होंने  ही तय किया और भारी मन से  सेंट्रल प्रोवेंसी की सूचि में खंगार जाति को भंडरा सागर , बुलढ़ाना और होशंगाबाद की सेओनी मालवा तहसील मात्र में  सूचीबद्ध किया ! यह भारत सरकार (अनुसूचित जाति) आदेश 1936 के द्वारा अधिनियमित हुआ जिसमें खंगार जाति को सेंट्रल प्रोवेंसी के भंडरा बुलढाणा सागर और होशंगाबाद की सेओनी मालवा तहसील मात्र में अनुसूचित किया गया यही सेंट्रल प्रोवेंसी बाद में मध्यप्रदेश राजस्थान और महाराष्ट्र बना ! खंगार जाति बहुतायत में यूनाइटेड प्रोवेंसी में भी निवासरत थी किंतु बाबा साहब ने उनकी घोर उपेक्षा की सेंट्रल प्रोवेंसी में अधिनियमित करना उनकी मजबूरी और जरूरत भी कही जा सकती है कारण कि वो बॉम्बे से जनप्रतिनिधित्व करते थे जो कि सेंट्रल प्रोवेंसी का हिस्सा था और अपने फायदे के लिए अपने क्षेत्र के मतदाताओं को लुभाना कौन नही चाहता ...  11 अगस्त 1950 में प्रकाशित भारत सरकार के राजपत्र , संविधान (अनुसूचित जाति) आदेश में 21 वे स्थान पर बभंडरा बुलढ़ाणा और सागर जिले में एवं होशंगाबाद और और होशंगाबाद की सेवनी मालवा तहसील में खंगार अनुसूचित जाति की सूचि में शुमार रहा आगे चलकर यही व्यवस्था  राज्यों के पुनर्गठन के बाद 29 अक्टूबर 1956 में राष्ट्रपति के आदेश से भारत के राजपत्र में अनुसूचित जाति और जनजाति सूचि (संशोधित)आदेश 1956 प्रकाशित हुआ जिसके अनुसार खंगार जाति के साथ मध्यप्रदेश के सागर और होशंगाबाद की सेवनी मालवा तहसील में  मिर्धा और कनेरा जाति को 11 वें नम्बर पर सूचीबद्ध किया गया राजस्थान जहाँ खंगार जाति की संख्या लगभग नगण्य है वहाँ सिरोही जनपद को छोड़कर पूरे प्रान्त में एवं बॉम्बे के भंडरा और बुलढाणा जिले में 6वें क्रमांक पर खंगार जाति के साथ मिर्धा और कनेरा को सूचिबद्ध किया गया ! 20 सितम्बर 1976 को प्रकाशित राजपत्र अनुसूचित जाति एवं जनजाति संशोधित आदेश 1976 में  सम्पूर्ण मध्यप्रदेश राजस्थान एवं महाराष्ट्र प्रान्त में अनुसूचित जाति के तहत आरक्षित किया गया ! खंगार जाति में यह धारणा प्रचलित है कि खंगार जाति को आरक्षण सागर से पूर्व सांसद स्व.श्रीमती सहोदरा बाई राय ने दिलवाया इस धारणा के पीछे लोग उनके गोवा मुक्ति संग्राम में दिखाए अपूर्व पराक्रम का जिक्र करते हुए बताते हैं कि तत्कालीन पंडित नेहरू सरकार ने उन्हें संसद पहुँचाने के लिए उनके जनपद सागर को अनुसूचित जाति में आरक्षित किया जिससे वे सुगमता से संसद की सीढ़ी चढ़ सकें , यह धारणा न तो इतिहास सम्मत है न  ही तर्क सम्मत हम देखते आ रहे हैं कि अनुसूचित जाति की प्रथम सूचि जो कि 1936 में प्रकाशित हुई उस समय से ही खंगार जाति सागर और अन्य स्थान विशेष पर सूचीबद्ध है मैं यहाँ सांसद स्व. सहोदरा बाई के पराक्रम और उनकी सामाजिक सेवाओं पर कोई प्रश्न चिन्ह नही लगा रहा हूँ जो तथ्य सम्मत है तर्कसंगत है वही सत्य है और इस सत्य और तथ्य का वाचन प्रकाशन मेरा लक्ष्य है .. भवतु सब्ब मंगलम .....✍ अशोक सूर्यवेदी एडवोकेट , मऊरानीपुर