Friday, December 3, 2010

पैसा जो हमारा है

स्विस बैंक के एक जिम्मेवार अधिकारी के मुताबिक भारत के नेताओं का २८० लाख करोड़  रुपया स्विस बैंक में जमा है . और अगार इतना रुपया हमारे देश में वापस आ जाये तो हमारे देश में क्रांतिकारी परिवर्तन हो सकते है जैसे इतने रुपयों से देश का बजट ३० वर्षो तक बिना किसी अतिरिक्त कर के पारित होगा ६० करोड़ भारतियों का नौकरी मिल सकती है ,सभी गावों से दिल्ली तक ४ लें सड़क का निर्माण हो जायेगा ५०० सामाजिक प्रतिष्ठानों को हमेशा   निशुल्क बिजली आपूर्ति की जा सकती है , और हर भारत वासी को ६० वर्षों तक २००० रूपये प्रति माह बांटा जा सकता है ! सोचिये हमारे अमीर  भ्रष्ट नेताओं ने देश का कितना पैसा देश के बाहर ब्लाक कर रखा है .... आओ हम सब मिलकर विचार करे यह पैसा जो हमारा है हमारे देश को वापिस कैसे मिल सकता है ....

Tuesday, September 21, 2010

क्यों राघव क्यों ?

क्यों राघव क्यों ?
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गए छोड़ सौमित्र विकट वन में सीता की तन्द्रा जागी !
यह कैसा निर्णय लिया राम ने खुद से पूंछ रही वह राज्ञी !
राम ! तुम राजा जन जन के मन के अनुरागी !
मैं प्रिय प्रिया  तुम्हारी फिर भी किंचित रही अभागी !
ओ मानस मर्यादा के नव सोपान बनाने बाले राम !
क्या तुम्हारा नारी चिंतन भी यूँ ही रहा मिसाले   आम. 
अवध पति ! तुम न्यायमूर्ति थे न्यायिक पद पर विद्यमान !
यह आक्षेप सहा तुमने क्या अग्नि परीक्षा से अंजान ?
वादी ने कहा सुना तुमने निर्णय भी आप ही दे डाला ?
 मुलजिम को सुने बिना ही राजन वनवास निकाला  !
मुलजिम को ना सुनने  की प्रजापति कुछ लाचारी थी ?
या वादी की प्रतिक्रिया स्वामी विश्वासों पर भारी थी ?
 चित्रकूट की कुटिया में साथ तुम्हारे सुख ही पाया !
और विछुड़ कर तुमसे अशोक वाटिका स्वर्णपुरी में दुःख ही पाया !
तब मजबूरी में सहा वियोग तुम मेरी खातिर भटके वन में !
ओ निष्कासित करने वाले! खो दी क्या? जो थी प्रीत तुम्हारे मन में !
मैं धरती की बिटिया शायद वनवास भाग्य लिखा लाई!
यह क्लेश ना मुझको किंचित तुम साक्षी हो रघुराई !
राम  राज्य में रानी भी जब घोर उपेक्षा की भोगी .
यही कष्ट है मुझे अवध में नारी की क्या गति होगी .

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रचना :-
अशोक सूर्यवेदी  एडवोकेट 
मऊरानीपुर 
  

Sunday, September 19, 2010

मऊरानीपुर जल विहार महोत्सव २०१०

                    जल विहार महोत्सव २०१०
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जल विहार मऊरानीपुर की ऐतिहासिक परंपरा है ! भाद्रपद माह  की द्वादस  तिथी को भगवान अपने श्री मंदिर से  ना केवल सुखनई  के जल में विहार करने वरन भक्तों को दर्शन देने के लिए बाहर निकलते हैं ! ऐसा प्रसिद्द है कि जब भगवान मूर्ति स्वरुप में  एक बार मंदिर में प्रतिष्ठित हो जाते  है तो फिर बाहर नहीं निकलते हैं ! किन्तु लोक कल्याण के लिए अपने हर  खास और आम भक्त को दर्श-पर्श देने भगवान इस नगर में ना केवल अपने श्री मंदिर से बाहर निकलते हैं बल्कि सुखनई के जल में विहार कर भक्तों के दरवाजे दरवाजे जाकर उनकी कुशल क्षेम भी लेते हैं ! मऊरानीपुर में जल विहार का विशेष महत्व इसलिए भी है कि जब ब्रिटिश काल में इस परम्परा को रोकने की धर्म विरोधी कोशिश की  गयी तो नगर के प्रातः स्मरणीय  गूदर बादशाह जी भगवान की  अगवाई में अंग्रेजी आदेश की  अवहेलना कर परम्परा को जारी  रखा गया  इसलिए आज भी जलविहार के प्रथम दिन भगवान गूदर बादशाह जी महाराज का विमान शोभायात्रा की अगुवाई  करता है  !जल विहार के लिए भगवान गूदर बादशाह जी महाराज के अतिरिक्त भगवान  धनुषधारी जी महाराज , रामलला भगवान जानकी जी और लखन लाल जी सहित अनेकानेक विमानों में शोभायमान होकर पवित्र सुख नई के जल में विहार कर नगर भ्रमण कर वापिस अपने मंदिरों में आते हैं .

Saturday, July 17, 2010

अपना हाथ जगन्नाथ

 अयं मे हस्तो भगवानयं मे भगवत्तर:
 अयं मे विश्वभेषजो अयं शिवाभिमर्शन: 


ऋग्वेद की इस पवित्र ऋचा का अर्थ है की मेरा यह हाथ ऐश्वर्यवान भगवान्  है  यह मेरा दूसरा हाथ और भी ऐश्वर्यवान है। यह मेरा हाथ सभी रोग-व्याधियों को औषधि के समान दूर करने वाला है। अर्थात ये मेरे दोनों हाथ जीवन के सभी दुख-दैन्य दूर कर सकते हैं। ये मेरे हाथ सुखद स्पर्श वाले हैं, यानी सुखदायी हैं .


इसी प्रकार एक अन्य श्लोक :-


कराग्रे बसते लक्ष्मिः , कर मध्ये सरस्वती,
करमूले तु गोविन्दः , प्रभाते  करदर्शनम,


अर्थार्त   हाथ के अग्रिम भाग में माता लक्ष्मी मध्य में सरस्वती और जड़ के स्थान पर स्वम भगवान् गोविन्द का निवास है इसलिए प्रभात  काल में अपने हाथ का दर्शन करना चाहिए !

दोनों ही हाथ में भगवान की उपस्थिति का वर्णन करते है और वैसे भी हाथ ही हमारे अधिकतर कार्यो का संपादन करते है इसीलिए कहा जाता है अपना हाथ जगन्नाथ !




अशोक सूर्यवेदी 

Sunday, April 18, 2010

KHANGAR KHYAL

खंगार ख्याल


हे गढ़कुंडार ! तुझ पर निसार, हैं हम खंगार, जय बोलेंगे 


 दोहा :-काशी और प्रयाग है , वीरों की यह भूम !
गाथा गाने बैठता , माता के पद चूम !!


हे  गढ़कुंडार !  तुझ पर निसार, हैं हम खंगार, जय बोलेंगे !
महिमा अपार, तेरे बंद द्वार, हम कलम धार, अब खोलेंगे !! 

हे कीर्तिवान, युग के निशान,
 जग जाये जान, गाथा तेरी !
वीरों की शान, करता बखान,
 सुन लगा ध्यान,  कविता मेरी !

धार हाँथ शीश, ममता में बीस ,
दे दे आशीष, माँ गिरवासन !
गढ़ की वो टीस, बनकर फनीस,
लिखवा दे रीझ हे माँ गाजन ! 

क्षत है कुडार ,हम करें श्रंगार ,बनकर खंगार, सच  बोलेंगे !
महिमा अपार तेरे बंद द्वार हम कलम धार  अब खोलेंगे  !! 

महाराजा खेत, रैयत समेत,
 थे गए चेत, दुश्मन आये !
जन खड्ग देत, जय वचन लेत,
बांधत है सेत, गण हर्षाये !

जन खड्ग धार, बनते खंगार, 
इस गढ़ के द्वार दीक्षा पाए !
धन बल अपार , जन गण अगार,
वैरिन खों मार, रण में छाये !
  
नारी का  मान , वीरों की शान , लेकें क्रपान ,  हम बोलेंगे !
महिमा अपार , तेरे बंद द्वार , हम कलम धार, अब खोलेंगे !!

तेरे गढ़ की जाई, केशर सी बाई ,
थी काम आयी, कर जौहर को !
केशर का भाई, विक्रम बरदाई ,
गया रण में ढाई , ज्यों केहर हो !

होकें कुर्बान , राखी थी शान ,
मिट गए भान , तेरी खातिर !
थे मुसलमान, वैरी बीरान ,
कर गए निशान ,वे थे शातिर !

कायर कपूत, दुश्मन के दूत, बने  राजपूत , ना बोलेंगे !
महिमा अपार तेरे बंद द्वार हम कलम धार अब खोलेंगे !!

 अशोक सूर्यवेदी

Friday, March 26, 2010

MAHARAJA KHET SINGH KHANGAR

राष्ट्र धर्म और जुझारू संस्कृति के जनक
महाराजा खेत सिंह खंगार
                                                          अशोक सूर्यवेदी
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वीर प्रसूता पावन भू पर , वीर खंगारों सी संतान !
सदियों का इतिहास बताता ,खंगार वीर थे बड़े महान !
खंग अंग जो धारण करते कहलाते थे वो खंगार !
 इसी जुझौति में जन्मे थे एक राजन ऐसे खेत खंगार !
शेरों से बिन शस्त्र वो लड़ते बज्र देह वाले थे खेत !
खड्ग धार जब रण में डटते बैरी नवते सैन्य समेत !
बैशाख मास अक्षय तृतीया तिथी पुनीता !
खेतसिंह ने गण परिषद् का बहुमत जीता !
धसान बेतवा यमुना के जल से पावन अभिषेक हुआ !
विंध्याचल मुदित मन भारी उत्सव यह देख हुआ !
सिंहासन पर बैठा नायक चंदेलों का दिल धक् धक् धड़का !
आततायी यवनों का भी रक्त धमनियों में छनका !
आशा टूटी पड़िहारों की गोंडों के सपने टूट गए !
क्रूर अधर्मियों के अल्ला भी उनसे रूठ गए !
दिल्ली पर शासन करते थे राजन प्रथ्वीराज महान !
मित्र बनाया खेत सिंह को बड़ी दिनोदिन उनकी शान !
विजय महोबा किया खेत सिंह उदल ना सह पाया वार !
आल्हा और परमाल से योद्धा रण से छोड़ भागे संग्राम !
खंगार वीर का लौह मना दिल्ली पति ने महोबे माह  !
विजय तिलक कर खेत सिंह का दिल्ली शासन की दी छांह !
आतंक तभी गौणों का सीमा लाँघ गया सिर होकर पार !
चैन की साँसे दी जनता को गोणों का कर के संहार !
प्रथ्वी राज मुदित मन भरी खेत सिंह की जय जयकार !
जूझ के जीने मरने वालों का ही  धाम बना है गढ़ कुंडार !
तभी तराइन की भूमि पर गौरी ने दे दी ललकार !
क्षमा दान पा गीदड़ ने फिर सिंहों पर कर दीन्हा वार !
रणसींगा बज उठा युद्ध का भूमि तराइन में ललकार !
हिंदी हिन्दू हिंद के रक्षक कूंद पड़े रण ले तलवार !
हुआ युद्ध तब महा भयंकर बिजली सी चमकी तलवार !
लावा फूट पड़ा आँखों का बनकर लोहू पी असिधार !
हा पत्नातुर हुआ बिधाता सर्व खर्व का दाता आज !
वीर प्रश्वनी भू पर टूटी गद्दारी की भरकम गाज !
प्रथ्वीराज छले गए रणमें हतप्रभ राह गया वीर समाज !
हाय तराइन चींख पड़ी साँपों से कैसे बंध गया बाज !
लेकिन जाने से पहले वो करतब दिखा गए चौहान !
बिन आँखों के तीर चलाकर मार गिराया था सुल्तान !
क्षात्र धर्म को किया कलंकित जयचन्द्र ने बनकर गद्दार !
अपने घर में आग लगाकर कौन बना है सूबेदार !
गद्दार के संग गद्दारी कर दी पीठ में घौंपी थी तलवार !
घर के भीतर फूट हुयी तो बनी मुसल्लों की सरकार !
त्राहिमाम कर उठा सनातन देख मुसल्ला अत्याचर !
स्वर्ण सुंदरी के लोभी वे मर्यादा पर करते वार !
मित्र सखा संरक्षक छीना अनहोनी ने कर प्रहार !
ना हुए निराश खेत सिंह जी करते रहे वार पर वार !
दिल्लीपति का शोक मना ले इतना समय नहीं था पास !
क़तर द्रष्टि देख रही थी उनकी और सभी की आस !
राष्ट्र धर्म सर्वोच्च मानकर हिन्दू शासन दिया करार !
खंड जुझौती राज्य बनाया जन जन को सौंपी तलवार !
एक जुझारू नीति बनाकर रक्कस का कर दिया प्रसार !
सीमा को निज पुत्र सौंप कर शिशु को रक्षक दिया करार !
नारी राष्ट्र  ध्वजा भारत की निर्बल हमें नहीं स्वीकार !
वीर प्रश्वनी माताएं भी शस्त्र करें अब अंगीकार !
खड्ग थमा दी पुरुषों को देकर सीमा का अधिभार !
और खंगोरिया महिलाओं को  दुर्गा शक्ति का अवतार !
सामंत मित्र और सैन्य मिलकर संघ बनाया तब खंगार !
जुझौती खंड हित जूझा है जो खंग आरोति वह खंगार !
राष्ट्र धर्म के हित चिंतन को संघ बनाया था खंगार !
वेत्रवती से चम्बल तक फैली वीर खंगारों की सरकार !
धर्म प्रिय थे रा खेत सिंह किया धर्म का बहुत प्रसार !
मां गजानन शक्तिपीठ मंदिर बनवाया गढ़ कुंडार !
स्वाभिमान और देश की खातिर खंग अंग जो करते धार !
विजय सदा उनकी ही चेरी जो दुश्मन पर करते वार !
सदा समर में जीती शक्ति नहीं सुहाए हैं मनुहार !
यदि समर से मुह मोड़े तो उस शासन को है धिक्कार !
राष्ट्र धर्म और क्षात्र धर्म का पाठ पढ़ा गए हैं महाराज !
विजय पराजय ना लख जुझौ यही सिखा गए  हैं महाराज ! 
जब तक नीर बहे बेतवा साक्षी जब तक गढ़ कुंडार !
वीर ! दिवाकर गाथा गए यूँ ही तेरी जय जय  खंगार !!!!
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जय सौराष्ट्र --- जय गिरनार !!!
जय जुझौती----- जय कुंडार!!!

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कृति
अशोक सूर्यवेदी एड. 
मऊरानीपुर ( झाँसी )