Saturday, August 9, 2014

"रक्षाबंधन :- राखी का त्यौहार "

आज रक्षा बंधन है सभी भाई बहिनों को रक्षाबंधन की हार्दिक शुभ कामनायें ...!!
द्वापरयुग की देन है राखी का पर्व , जब बहिनों ने भाई की कलाई पर राखी बांधने की परंपरा डाली ! धर्मराज युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में चेदिराज शिशुपाल ने जब भगवान् श्रीकृष्ण को अपमानित करते हुए मर्यादा की सीमाओं को पार किया और भगवान की सहन शक्ति की सीमा भी चुक गयी तो उन्होंने पास खड़ी द्रौपदी के हाथ से थाली लेकर उसमे सुदर्शन का आह्वान कर उसे शिशुपाल की गर्दन पर फेका तो शिशुपाल की गर्दन धड से अलग हो गयी लेकिन इस थाली के फेकने के क्रम में श्रीकृष्ण की कलाई में थाली की किनारी रगड़ जाने से जख्म हो गया द्रौपदी ने देखा तो तुरंत अपनी साड़ी को फाड़कर कन्हैया जी के हाथ में पट्टी बाँध दी .....धर्म बहिन द्रौपदी के इस आचरण ने कन्हैया जी को रोमांचित कर दिया उन्होंने द्रौपदी को हर संकट में रक्षा करने का वचन दिया .......कालांतर में हस्तिनापुर की राजसभा में दुशासन ने जब द्रौपदी के बस्त्र हरण का प्रयास किया तो भगवान् श्री कृष्ण ने द्रौपदी की रक्षा की तभी से बहिने अपने भाई की कलाई पर रक्षा सूत्र बांधकर उनसे अपनी रक्षा का वचन लेती हैं .....!!

"बने जुझौति राज्य हमारा, राजधानी हो गढ़कुंडार"

हम कलम पथी निज धार छोड़ ,
है खड्ग पंथ पर कलम धार !
मित्र मंडली मेरी सारी ,
हो गयी है अब तो खंगार !
खड्ग मार्ग पर कलम पथी हम ,
लेकर यह संकल्प चले !
बने जुझौती राज्य हमारा ,
राजधानी हो गढ़ कुंडार !!
............'अशोक सूर्यवेदी"

Thursday, August 7, 2014

Ashok Suryavedi

अशोक सूर्यवेदी
Ashok Suryavedi

Wednesday, August 6, 2014

गढ़कुंडार की ख़ामोशी

यौवन का रसिया जग सारा ,
बना रहे जब तक सिंगार !
सकल साधना चुक जाती है ,
मित्थ्याकर्षण का आधार !
देख मनुज की दुर्बलता को ,
ही ख़ामोशी ओढ़ गया !
न उपेक्षा न ही इच्छा अब ,
पाला करता गढ़ कुंडार !!
......................"अशोक सूर्यवेदी"

Tuesday, August 5, 2014

"गुरु गढ़कुंडार"

दुनियाँ भर की पोथीं पढ़ लो ,
ग्रंथों वेदों का भी सार !
जीवन स्नातक हो जाओगे ,
आ जाओ बस इक ही बार !
जीवन की शाला का दर्शन ,
यहाँ रमा है कण कण में !
शाश्वत सत्य का पाठ पढाता ,
रहकर मौन भी गढ़ कुंडार !!
..................."अशोक सूर्यवेदी"

Monday, August 4, 2014

"शाश्वत सत्य और गढ़कुंडार"

झूठी रीती झूठी प्रीती ,
झूठे रिश्ते नातेदार !
झूठे बंधन झूठी माया ,
झूठा है यह संसार !
दुनियां भर के भोग भोगकर ,
सेज मिलेगी शोलों की !
शाश्वत सत्य जगत में एक ही ,
बोध कराता गढ़ कुंडार !!
..............."अशोक सूर्यवेदी"

Sunday, August 3, 2014

नील कंठ सा गढ़ कुंडार

सत्ता के उत्थान पतन में,
हक में आई जीत न हार !
नियति नटी ने निर्णायक बन ,
माथा झूठ को बारम्बार !
सागर "समय" के मंथन में तब ,
द्वेष भाव का विष निकला !
अपमानों का गरल गटक है ,
नीलकंठ सा गढ़ कुंडार !!
.............."अशोक सूर्यवेदी"