समग्र
इतिहासों के जर्जर पन्ने , खंडहरों के दर्द शुमार ! गूँथ के लाया तुकबंदी में , गए महलों के आंसू चार ! मुझको कविता की समझ नही , मत कवि कहना मुझे मगर ! तुम्हे सुनाऊंगा मैं सब जो । कहता मुझसे गढ़ कुंडार !! ................." अशोक सूर्यवेदी "
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