कर आचमन माँ वेत्रवती से ,
गणपति को शीश झुकता हूँ !!
फिर माँ सरस्वती मैं तेरे दर पर,
याचक बनकर आता हूँ !!
माँ से शब्द सम्पदा ले अब ,
इतिहासों के साक्ष्य जुटाता हूँ !!
फिर गिरिवासन तेरे दर पर,
श्रद्धा से शीश झुकता हूँ !!
कुलदेवी मात गजानन ",
साक्षी मैं यह तुमसे रखता आस !!
साथ कलम का देकर माँ अब ,
लिखवा दो तुम इतिहास !!
वीर की गाथा है यह जिसने ,
जूझ के जीना मरना सीखा !!
तो सच को सच गाने की खातिर ,
मैंने भी कब डरना सीखा !!
जो म्रत्यु भय से मुक्त कराती ,
मातु कालिके नमस्कार ! !
अब निर्भय होकर गाता हूँ ,
मैं गौरव गाथा जय खंगार !!
"अशोक सूर्यवेदी "
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