अशोक सूर्यवेदी
समग्र
Friday, August 15, 2014
"स्वतंत्रते तेरी मंजिल में है , नीव का पत्थर गढ़ कुंडार"
वीरता के मद में थे चूर ,
मान, मदिरा पी खंगार !
कीमती था मदिरा का मूल्य ,
जिंदगी बस दिन दो चार !
मातृका मधुशाला का मोल ,
चुका, देकर के बलिदान !
स्वतंत्रते तेरी मंजिल में है ,
नीव का पत्थर गढ़ कुंडार !!
"अशोक सूर्यवेदी "
Tuesday, August 12, 2014
ज्ञान कोष के हीरे मोतीं , रोज लुटाता गढ़ कुंडार !!
सेंध लगाकर ढूंढा करते ,
सोने चांदी के भंडार !
चंदेलों की अतुल सम्पदा ,
किंवा छोड़ गए खंगार !
अपने अंतस के चक्षु खोलो ,
बहुत मिलेगा जीवन भर !
ज्ञान
कोष के हीरे मोतीं ,
रोज लुटाता गढ़ कुंडार !!
..................."अशोक सूर्यवेदी "
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