समग्र
सत्ता के उत्थान पतन में, हक में आई जीत न हार ! नियति नटी ने निर्णायक बन , माथा झूठ को बारम्बार ! सागर "समय" के मंथन में तब , द्वेष भाव का विष निकला ! अपमानों का गरल गटक है , नीलकंठ सा गढ़ कुंडार !! .............."अशोक सूर्यवेदी"
Adbhud Kalpna ......
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