Wednesday, August 6, 2014

गढ़कुंडार की ख़ामोशी

यौवन का रसिया जग सारा ,
बना रहे जब तक सिंगार !
सकल साधना चुक जाती है ,
मित्थ्याकर्षण का आधार !
देख मनुज की दुर्बलता को ,
ही ख़ामोशी ओढ़ गया !
न उपेक्षा न ही इच्छा अब ,
पाला करता गढ़ कुंडार !!
......................"अशोक सूर्यवेदी"

1 comment: