समग्र
मंजिल पास आ जाती है तो , आड़े आता है संसार ! रोड़े और रूकावट है भ्रम , लौट न जाना तू थक हार ! इसकी जटिल भुगौलिक रचना । हृदय भाँपती आगत का ! सो पथिक से लुकाछिपी सी , करता रहता गढ़ कुंडार !! ..........."अशोक सूर्यवेदी"
No comments:
Post a Comment