भाट नहीं हूँ ना कोई चारण ,
जो बिरुदावली बखान करूँ !
शासन सत्ता राजमहल का ,
क्यों कर मैं गुणगान करूँ !
पीड़ा हूँ मैं जन गण मन की ,
खून सना संबोधन हूँ!
राजमहल से प्रश्न पूंछता ,
चौबारों का उद्बोधन हूँ !
केवल सच ही मेरी शैली है,
मैं दर्पण सा प्रतिउत्तर हूँ !
मैं झाँसी बाला बेटा हूँ ,
मैं शिला लेख का पत्त्थर हूँ !
ना चरण चूमना वंदन करना ,
पलक बिछाना सरकारों को !
जूझ के जीना जूझ के मरना,
ये आदत हम फनकारों को !
हमने हरदम डांट लगाई ,
सब कर्महीन दरवारों को !
राजतन्त्र से प्रजा तंत्र तक,
सब बेगैरत सरकारों को !
यदि विपत्ति में हो कोयल ,
गीत नहीं वो गाती है !
पिंजरे में हो मैना तो फिर,
नहीं मधुमास मनाती है !
तो क्या हम इनसे भी,
गए गुजरे इंसानों के भेष में !
कैसे हम मधुमास लिखें ,
जब आग लगी हो देश में !
मेरी आँखों में लावा है ,
विश्वास मुझे तुम शीतल दो !
शस्य श्यामला भू पर मुझको ,
मुस्कानों का समतल दो !
तो फिर मैं भी गीत लिखूंगा ,
पावस के अभिनन्दन के !
लेकिन पहले बंद करा दो ,
स्वर करुणा के क्रंदन के !
जिस दिन झोपड़ियों का आंसू ,
मुस्कान बना लेगें हम !
ना दिखे चाँद पर उस दिन ,
ईद मना लेंगे हम !!!!!!!!!
Sunday, July 27, 2014
" मैं शिला लेख का पत्थर हूँ "
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