Tuesday, July 29, 2014

"ध्रुव तारे सा गढ़कुंडार "

आँख फेरकर कल तक निकले ,
किंतु करोगे अब तुम चार !
सच्चाई पर थी जो चादर ,
आज हुई वो जर जर तार !
इस गढ़ की गौरव गाथा सुन ,
धाये कई एक कलम वीर !
ध्रुव तारे सा चमकेगा अब ,
जग में फिर से गढ़ कुंडार !!
.........."अशोक सूर्यवेदी"

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