समग्र
आँख फेरकर कल तक निकले , किंतु करोगे अब तुम चार ! सच्चाई पर थी जो चादर , आज हुई वो जर जर तार ! इस गढ़ की गौरव गाथा सुन , धाये कई एक कलम वीर ! ध्रुव तारे सा चमकेगा अब , जग में फिर से गढ़ कुंडार !! .........."अशोक सूर्यवेदी"
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