खंगार ख्याल
हे गढ़कुंडार ! तुझ पर निसार, हैं हम खंगार, जय बोलेंगे
दोहा :-काशी और प्रयाग है , वीरों की यह भूम !
गाथा गाने बैठता , माता के पद चूम !!
हे गढ़कुंडार ! तुझ पर निसार, हैं हम खंगार, जय बोलेंगे !
महिमा अपार, तेरे बंद द्वार, हम कलम धार, अब खोलेंगे !!
हे कीर्तिवान, युग के निशान,
जग जाये जान, गाथा तेरी !
वीरों की शान, करता बखान,
सुन लगा ध्यान, कविता मेरी !
धार हाँथ शीश, ममता में बीस ,
दे दे आशीष, माँ गिरवासन !
गढ़ की वो टीस, बनकर फनीस,
लिखवा दे रीझ हे माँ गाजन !
क्षत है कुडार ,हम करें श्रंगार ,बनकर खंगार, सच बोलेंगे !
महिमा अपार तेरे बंद द्वार हम कलम धार अब खोलेंगे !!
महाराजा खेत, रैयत समेत,
थे गए चेत, दुश्मन आये !
जन खड्ग देत, जय वचन लेत,
बांधत है सेत, गण हर्षाये !
जन खड्ग धार, बनते खंगार,
इस गढ़ के द्वार दीक्षा पाए !
धन बल अपार , जन गण अगार,
वैरिन खों मार, रण में छाये !
नारी का मान , वीरों की शान , लेकें क्रपान , हम बोलेंगे !
महिमा अपार , तेरे बंद द्वार , हम कलम धार, अब खोलेंगे !!
तेरे गढ़ की जाई, केशर सी बाई ,
थी काम आयी, कर जौहर को !
केशर का भाई, विक्रम बरदाई ,
गया रण में ढाई , ज्यों केहर हो !
होकें कुर्बान , राखी थी शान ,
मिट गए भान , तेरी खातिर !
थे मुसलमान, वैरी बीरान ,
कर गए निशान ,वे थे शातिर !
कायर कपूत, दुश्मन के दूत, बने राजपूत , ना बोलेंगे !
महिमा अपार तेरे बंद द्वार हम कलम धार अब खोलेंगे !!
अशोक सूर्यवेदी
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