अँधेरा है मगर फिर भी , चलो दीपक जलाता हूँ !!
अमा ने आज ठाना है ,
रोशनी होने न देगी !
होगा नही उजाला अब ,
धरा अम्बर को तरसेगी !
तिमिर से मैं मगर फिर भी , सदा विपरीत जाता हूँ !
अँधेरा है मगर फिर भी , चलो दीपक जलाता हूँ !!
मेघों ने कहा हुंकार ,
कर ले दासता स्वीकार !
चाँद तारे सभी तेरे ,
छुपे देखो मुझसे हार !
मगर निष्ठां मेरी ज्योति , उसे ही आजमाता हूँ !
अँधेरा है मगर फिर भी , चलो दीपक जलाता हूँ !!
अँधेरे का देखो राज ,
मूक है सारा विज्ञ समाज !
सक्षम जो करते प्रतिरोध ,
नदारद उसको दे ताज !
मेरी हस्ती है छोटी सी तो खुद को ज्वाल बनाता हूँ , अँधेरा है मगर फिर भी , चलो दीपक जलाता हूँ !!
प्रलय का दम घटा भरती ,
सहमती काँपती धरती !
तिमिर के राज में कुछ भी ,
रहेगा शेष कहीं नहीं !
प्रलय से मैं नही डरता , सृजन के गीत गाता हूँ !
अँधेरा है मगर फिर भी , चलो दीपक जलाता हूँ !!
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ब कलम
अशोक सूर्यवेदी एड.
मऊरानीपुर
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