: "घार" :
पर्वत श्रेष्ठ "बाबा विंध्य" के प्राकृतिक संरक्षण में बसे भूभाग जिसे कि आज बुन्देलखण्ड कहा जाने लगा है के इतिहास पर कलम चलाने वाले कलमकारों ने "घार" शब्द की और उससे आशयित भूभाग की घोर उपेक्षा की या फिर यह शब्द और इसका यथार्थ उनकी दृष्टि से बचा रहा है !
"घार" शब्द खंगारो के सन्दर्भ में अत्याधिक महत्त्व रखता है ! यह शब्द आज भी स्थानीय खंगारों में एवं अन्य जातियों में अत्याधिक गौरव के साथ प्रयुक्त होता है ! घार शब्द समूह अथवा गण का घोतक है जो निश्चित रूप से खंगार शासित भूमि को खंगार गणराज्य होने की स्पष्ट घोषणा करता है ! "घार" शब्द खंगारों के राजनैतिक , भौगोलिक , एवं सांस्कृतिक इतिहास पर न केवल पर्याप्त शोध की रूपरेखा प्रस्तुत करता है बल्कि अँधेरे में छिपे उनके स्वर्णिम अतीत पर प्रकाश डालने की अद्भुद क्षमता भी रखता है !
घार शब्द बुंदेलखंड की पयस्वनी सरिताओं दशार्ण (धसान)एवं वेत्रवती (बेतवा) के मध्य के भूभाग को सीमांकित करता है ! यही वह भूभाग है जहाँ प्राचीन गणतंत्र के पालक पोषक यौधेयों के आयुधजीवी गण खंगार का मुख्य क्रीड़ांगन है जहाँ उन्होंने अपना वर्चस्व स्थापित किया और यहीं पर अपना सर्वस्व निछावर किया ! आज भी खंगार आबादी के प्रमुख ग्राम और की गणसत्ता का केंद्र गढ़कुण्डार इसी बेतवा और धसान के मध्य स्थापित हैं !
*"घार के पार खंगार"*
यौद्धेय खंगार घार में स्थापित हुए किन्तु वे यहीं तक सीमित न रह सके और कालान्तर में उन्होंने अपने राज्य की सीमाओं को विस्तार दिया धसान के पार जाकर केन नदी तक एवं बेतवा पार कर उन्होंने चम्बल और यमुना तक अपनी सीमाओं का विस्तार कर लिया जिसे कालान्तर में खंगार गणराज्य के सर्वाधिक प्रख्यात गणाधिपति खेतसिंह खंगार ने अपनी जुझारू नीतियों के पालनपोषण में खंगार शासित भूभाग को "जुझौति" नाम दिया !
धसान और केन नदी के मध्य यौद्धेय खंगार जहाँ जहाँ भी समूह बद्ध हैं वे गाँव घार के गाँव के रूप में जाने जाते हैं भले ही वह परिक्षेत्र चंदेल राज्य की सीमा का भाग है किन्तु उस इलाके में "घार के खंगार" या "घार के गाँव" शब्द युग्म इस तथ्य को पुष्ट करते हैं कि खंगारों ने अपने खड्ग के दम पर उन गाँवों को चंदेल भूपतियों से विजित किया था !
आज के खंगार समाज में भी केन नदी तक बसे हुए खंगारो के मध्य घार के खंगार बेटी व्यव्हार करते हैं केन के उस पार के किसी भी व्यक्ति को जिसकी जड़ें घार में नही हैं उसे घार के खंगार मान्यता नही देते !
वहीं दूसरी ओर बेतवा और चम्बल के मध्य का भूभाग भी लगभग इसी परिपाटी को समृद्ध करता है ! खंगार भूपतियों ने बेतवा पार कर अपनी समृद्धि चम्बल और यमुना तक विस्तारित की यह परिक्षेत्र उन्होंने कदाचित चौरासी क्षेत्र के कुर्मियों और ग्वालियर के परिहारों से विजित किया किन्तु चम्बल पार भदौरिया शासकों से उनके मैत्री पूर्ण सम्बन्ध कायम हुए जिसकी झलक आज भी खंगार और भदौरिया समुदाय में दृश्यमान है तमाम इतिहासकार भदौरिया और खंगार शासकों में सम्बन्ध स्वीकार करते हैं भदावर के चौहान शासक भदौरिया नामसे विख्यात हुए ! खंगार भदौरिया संबंधों की अनेक कथाएं लोक में विख्यात हैं जिनका सार यह है कि खंगार और भदौरिया के मध्य प्रगाढ़ सम्बन्ध हैं जो रिश्ते में खंगार को भदौरिया का मातुल स्थापित करते हैं और आज भी यह परंपरा दोनों वर्गों में सतत विद्यमान है भदौरिया अपने संस्कारों में अपने निज मातुल के पूर्व खंगार मातुल को सम्मानित कर अपने जातीय संस्कारों को सम्पादित करते हैं जुझौति के खंगार शासन के उपरांत भी भदौरिया शासकों द्वारा खंगारों को संरक्षित किये जाने के अनेक उदहारण इतिहास में दर्ज हैं !
वहीँ दूसरी ओर खंगार शासकों का वैभव ग्वालियर के परिहारों को आतंकित कर रहा था ऐसे उदहारण हैं कि परिहार शासक शिविर शाह ने कौंच कालपी का अप्न क्षेत्र खंगारों से विकट संघर्ष कर पुनः हासिल कर लिया था !यह घटना 10 वीं शताब्दी की बताई !जो यह प्रमाणित करती है कि 10वीं शताब्दी के काफी पहले से खंगार शासक इस क्षेत्र में विद्यमान थे और यह दौर उनके शौर्य का साक्षी था ....!!
.
.
.
.
*ब कलम*
"अशोक सूर्यवेदी एडवोकेट"
मऊरानीपुर (झाँसी) उ.प्र.
9450040227
nice dada
ReplyDelete