Tuesday, May 12, 2015

जलता हुआ चलाचल आगे

" सूरज सिखलाता है तुझको ,जलता हुआ चलाचल आगे "

दुनियाँ में अँधियारा पसरा ,
तुझको राह दिखाए कौन ?
सक्षम तिमिर से लड़ने वाले ,
रहने लगे हैं अब तो मौन !
सबके अपने चाँद औ' तारे , तू किस का उजियारा माँगे ?
सूरज सिखलाता है तुझको , जलता हुआ चलाचल आगे !

सब सोये हैं जीव जगत के ,
सबके सब अगुआ को ताकें !
अगुआ अगुआ ढूंढ रहे सब ,
खुद को भुला रमायन बाँचें !
होकर ज्वलन्त बढ़ तू मग में , जगा उसे तू जो भी जागे !
सूरज सिखलाता है तुझको , जलता हुआ चलाचल आगे !

हो ज्वलंत जब तू निकलेगा ,
उजियारा तब होगा मग में !
जीवन की नव ज्योत जलेगी ,
क्रांति शुरू फिर होगी जग में !
तेरी हस्ती है छोटी भूल ,अब देख तुझे जनगण जागे !
सूरज सिखलाता है तुझको , जलता हुआ चलाचल आगे !

जब तक जलता चला चलेगा ,
बना रहेगा ज्योति स्वरुप !
यदि तूने रा' छोड़ी अपनी ,
तो हो जायेगा भद्दा कुरूप !!
जलना अपनी नियति बना ले , जब तक राख न उड़ कर भागे !
सूरज सिखलाता है तुझको , जलता हुआ चलाचल आगे !
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कृति
"अशोक सूर्यवेदी"

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