भारत में राजकीय तौर पर दमित वर्ग के उत्थान के लिए आरक्षण की व्यवस्था का पहला उदाहरण कोल्हापुर नरेश शाहू जी महाराज के शासन में देखने मिलता है जिन्होंने सर्व प्रथम सन 1902 में पिछड़े वर्ग से गरीबी दूर करने और राज्य प्रशासन में उनकी हिस्सेदारी सुनिश्चित करने के लिए अधिसूचना जारी की कालांतर में ब्रिटिश शासन के दौरान जिन तमाम महपुरुषों ने जाति वर्ग भेद की असमानता दूर करने के लिए अथक प्रयास किये उनमे सबसे बड़ा नाम और योगदान बाबा साहब डॉ. भीमराव रामजी आंबेडकर का है ! सन 1927 में 7 सदस्यीय ब्रिटिश सांसदों का समूह सर जॉन साइमन के नेतृत्व में भारत में संविधान सुधारों के अध्ययन के लिए भारत आया जिसे साइमन कमीशन के नाम से जाना जाता है ! भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और मुस्लिम लीग के कड़े विरोध के बाबजूद भी डॉ. आंबेडकर अपने दलित शोषित वर्ग के कल्याण के लिए कमीशन के सामने प्रस्तुत हुए ! यहीं से भारत में आरक्षण के युग का सूत्रपात हुआ ! डॉ. आंबेडकर दलित जातियों के लिए नौकरियों और राजनीति में विशेष आरक्षण चाहते थे , डॉ. साहब के दलित की परिभाषा में समाज का वह वर्ग मात्र ही शामिल था जो सामाजिक तौर पर सदियों से छुआ छूत का जबरजस्त शिकार था जबकि सर साइमन क्रिमिनल ट्राइब्स आपराधिक जनजातियां जो की वास्तविक अर्थों में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थीं जिन्होंने 1857 का विद्रोह खड़ा किया जिनके दमन के लिए 1872 में अंग्रेजी हुकूमत ने क्रिमिनल ट्राइब्स एक्ट बनाकर उन्हें अपराधी जाति नामित किया को और पर्वतीय जनजातियों को दलित शब्द की परिभाषा में शुमारकर उनके उन्ययन का रास्ता प्रशस्त करने के पक्षधर थे कदाचित डॉ. आंबेडकर को क्रिमिनल ट्राइब्स जिन्हेंआज विमुक्त जाति के नाम से जाना जाता है से कोई सहानुभूति न थी और वह आरक्षण के लिए सिर्फ अस्यपृश्य जनों को ही पात्र मानते थे किन्तु सर साइमन केआग्रह या कि दबाव को वो टाल सकने में सक्षम न थे तथापि उन्होंने साइमन की उपेक्षा न करते हुए भी इन जातियों की उपेक्षा करने में कोई कोताही न बरती आरक्षण की हक़दार जातियों का मसौदा उन्होंने ही तय किया और भारी मन से सेंट्रल प्रोवेंसी की सूचि में खंगार जाति को भंडरा सागर , बुलढ़ाना और होशंगाबाद की सेओनी मालवा तहसील मात्र में सूचीबद्ध किया ! यह भारत सरकार (अनुसूचित जाति) आदेश 1936 के द्वारा अधिनियमित हुआ जिसमें खंगार जाति को सेंट्रल प्रोवेंसी के भंडरा बुलढाणा सागर और होशंगाबाद की सेओनी मालवा तहसील मात्र में अनुसूचित किया गया यही सेंट्रल प्रोवेंसी बाद में मध्यप्रदेश राजस्थान और महाराष्ट्र बना ! खंगार जाति बहुतायत में यूनाइटेड प्रोवेंसी में भी निवासरत थी किंतु बाबा साहब ने उनकी घोर उपेक्षा की सेंट्रल प्रोवेंसी में अधिनियमित करना उनकी मजबूरी और जरूरत भी कही जा सकती है कारण कि वो बॉम्बे से जनप्रतिनिधित्व करते थे जो कि सेंट्रल प्रोवेंसी का हिस्सा था और अपने फायदे के लिए अपने क्षेत्र के मतदाताओं को लुभाना कौन नही चाहता ... 11 अगस्त 1950 में प्रकाशित भारत सरकार के राजपत्र , संविधान (अनुसूचित जाति) आदेश में 21 वे स्थान पर बभंडरा बुलढ़ाणा और सागर जिले में एवं होशंगाबाद और और होशंगाबाद की सेवनी मालवा तहसील में खंगार अनुसूचित जाति की सूचि में शुमार रहा आगे चलकर यही व्यवस्था राज्यों के पुनर्गठन के बाद 29 अक्टूबर 1956 में राष्ट्रपति के आदेश से भारत के राजपत्र में अनुसूचित जाति और जनजाति सूचि (संशोधित)आदेश 1956 प्रकाशित हुआ जिसके अनुसार खंगार जाति के साथ मध्यप्रदेश के सागर और होशंगाबाद की सेवनी मालवा तहसील में मिर्धा और कनेरा जाति को 11 वें नम्बर पर सूचीबद्ध किया गया राजस्थान जहाँ खंगार जाति की संख्या लगभग नगण्य है वहाँ सिरोही जनपद को छोड़कर पूरे प्रान्त में एवं बॉम्बे के भंडरा और बुलढाणा जिले में 6वें क्रमांक पर खंगार जाति के साथ मिर्धा और कनेरा को सूचिबद्ध किया गया ! 20 सितम्बर 1976 को प्रकाशित राजपत्र अनुसूचित जाति एवं जनजाति संशोधित आदेश 1976 में सम्पूर्ण मध्यप्रदेश राजस्थान एवं महाराष्ट्र प्रान्त में अनुसूचित जाति के तहत आरक्षित किया गया ! खंगार जाति में यह धारणा प्रचलित है कि खंगार जाति को आरक्षण सागर से पूर्व सांसद स्व.श्रीमती सहोदरा बाई राय ने दिलवाया इस धारणा के पीछे लोग उनके गोवा मुक्ति संग्राम में दिखाए अपूर्व पराक्रम का जिक्र करते हुए बताते हैं कि तत्कालीन पंडित नेहरू सरकार ने उन्हें संसद पहुँचाने के लिए उनके जनपद सागर को अनुसूचित जाति में आरक्षित किया जिससे वे सुगमता से संसद की सीढ़ी चढ़ सकें , यह धारणा न तो इतिहास सम्मत है न ही तर्क सम्मत हम देखते आ रहे हैं कि अनुसूचित जाति की प्रथम सूचि जो कि 1936 में प्रकाशित हुई उस समय से ही खंगार जाति सागर और अन्य स्थान विशेष पर सूचीबद्ध है मैं यहाँ सांसद स्व. सहोदरा बाई के पराक्रम और उनकी सामाजिक सेवाओं पर कोई प्रश्न चिन्ह नही लगा रहा हूँ जो तथ्य सम्मत है तर्कसंगत है वही सत्य है और इस सत्य और तथ्य का वाचन प्रकाशन मेरा लक्ष्य है .. भवतु सब्ब मंगलम .....✍ अशोक सूर्यवेदी एडवोकेट , मऊरानीपुर
Tuesday, September 3, 2019
आरक्षण में खंगार जाति ... एक अन्वेषण
भारत में राजकीय तौर पर दमित वर्ग के उत्थान के लिए आरक्षण की व्यवस्था का पहला उदाहरण कोल्हापुर नरेश शाहू जी महाराज के शासन में देखने मिलता है जिन्होंने सर्व प्रथम सन 1902 में पिछड़े वर्ग से गरीबी दूर करने और राज्य प्रशासन में उनकी हिस्सेदारी सुनिश्चित करने के लिए अधिसूचना जारी की कालांतर में ब्रिटिश शासन के दौरान जिन तमाम महपुरुषों ने जाति वर्ग भेद की असमानता दूर करने के लिए अथक प्रयास किये उनमे सबसे बड़ा नाम और योगदान बाबा साहब डॉ. भीमराव रामजी आंबेडकर का है ! सन 1927 में 7 सदस्यीय ब्रिटिश सांसदों का समूह सर जॉन साइमन के नेतृत्व में भारत में संविधान सुधारों के अध्ययन के लिए भारत आया जिसे साइमन कमीशन के नाम से जाना जाता है ! भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और मुस्लिम लीग के कड़े विरोध के बाबजूद भी डॉ. आंबेडकर अपने दलित शोषित वर्ग के कल्याण के लिए कमीशन के सामने प्रस्तुत हुए ! यहीं से भारत में आरक्षण के युग का सूत्रपात हुआ ! डॉ. आंबेडकर दलित जातियों के लिए नौकरियों और राजनीति में विशेष आरक्षण चाहते थे , डॉ. साहब के दलित की परिभाषा में समाज का वह वर्ग मात्र ही शामिल था जो सामाजिक तौर पर सदियों से छुआ छूत का जबरजस्त शिकार था जबकि सर साइमन क्रिमिनल ट्राइब्स आपराधिक जनजातियां जो की वास्तविक अर्थों में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थीं जिन्होंने 1857 का विद्रोह खड़ा किया जिनके दमन के लिए 1872 में अंग्रेजी हुकूमत ने क्रिमिनल ट्राइब्स एक्ट बनाकर उन्हें अपराधी जाति नामित किया को और पर्वतीय जनजातियों को दलित शब्द की परिभाषा में शुमारकर उनके उन्ययन का रास्ता प्रशस्त करने के पक्षधर थे कदाचित डॉ. आंबेडकर को क्रिमिनल ट्राइब्स जिन्हेंआज विमुक्त जाति के नाम से जाना जाता है से कोई सहानुभूति न थी और वह आरक्षण के लिए सिर्फ अस्यपृश्य जनों को ही पात्र मानते थे किन्तु सर साइमन केआग्रह या कि दबाव को वो टाल सकने में सक्षम न थे तथापि उन्होंने साइमन की उपेक्षा न करते हुए भी इन जातियों की उपेक्षा करने में कोई कोताही न बरती आरक्षण की हक़दार जातियों का मसौदा उन्होंने ही तय किया और भारी मन से सेंट्रल प्रोवेंसी की सूचि में खंगार जाति को भंडरा सागर , बुलढ़ाना और होशंगाबाद की सेओनी मालवा तहसील मात्र में सूचीबद्ध किया ! यह भारत सरकार (अनुसूचित जाति) आदेश 1936 के द्वारा अधिनियमित हुआ जिसमें खंगार जाति को सेंट्रल प्रोवेंसी के भंडरा बुलढाणा सागर और होशंगाबाद की सेओनी मालवा तहसील मात्र में अनुसूचित किया गया यही सेंट्रल प्रोवेंसी बाद में मध्यप्रदेश राजस्थान और महाराष्ट्र बना ! खंगार जाति बहुतायत में यूनाइटेड प्रोवेंसी में भी निवासरत थी किंतु बाबा साहब ने उनकी घोर उपेक्षा की सेंट्रल प्रोवेंसी में अधिनियमित करना उनकी मजबूरी और जरूरत भी कही जा सकती है कारण कि वो बॉम्बे से जनप्रतिनिधित्व करते थे जो कि सेंट्रल प्रोवेंसी का हिस्सा था और अपने फायदे के लिए अपने क्षेत्र के मतदाताओं को लुभाना कौन नही चाहता ... 11 अगस्त 1950 में प्रकाशित भारत सरकार के राजपत्र , संविधान (अनुसूचित जाति) आदेश में 21 वे स्थान पर बभंडरा बुलढ़ाणा और सागर जिले में एवं होशंगाबाद और और होशंगाबाद की सेवनी मालवा तहसील में खंगार अनुसूचित जाति की सूचि में शुमार रहा आगे चलकर यही व्यवस्था राज्यों के पुनर्गठन के बाद 29 अक्टूबर 1956 में राष्ट्रपति के आदेश से भारत के राजपत्र में अनुसूचित जाति और जनजाति सूचि (संशोधित)आदेश 1956 प्रकाशित हुआ जिसके अनुसार खंगार जाति के साथ मध्यप्रदेश के सागर और होशंगाबाद की सेवनी मालवा तहसील में मिर्धा और कनेरा जाति को 11 वें नम्बर पर सूचीबद्ध किया गया राजस्थान जहाँ खंगार जाति की संख्या लगभग नगण्य है वहाँ सिरोही जनपद को छोड़कर पूरे प्रान्त में एवं बॉम्बे के भंडरा और बुलढाणा जिले में 6वें क्रमांक पर खंगार जाति के साथ मिर्धा और कनेरा को सूचिबद्ध किया गया ! 20 सितम्बर 1976 को प्रकाशित राजपत्र अनुसूचित जाति एवं जनजाति संशोधित आदेश 1976 में सम्पूर्ण मध्यप्रदेश राजस्थान एवं महाराष्ट्र प्रान्त में अनुसूचित जाति के तहत आरक्षित किया गया ! खंगार जाति में यह धारणा प्रचलित है कि खंगार जाति को आरक्षण सागर से पूर्व सांसद स्व.श्रीमती सहोदरा बाई राय ने दिलवाया इस धारणा के पीछे लोग उनके गोवा मुक्ति संग्राम में दिखाए अपूर्व पराक्रम का जिक्र करते हुए बताते हैं कि तत्कालीन पंडित नेहरू सरकार ने उन्हें संसद पहुँचाने के लिए उनके जनपद सागर को अनुसूचित जाति में आरक्षित किया जिससे वे सुगमता से संसद की सीढ़ी चढ़ सकें , यह धारणा न तो इतिहास सम्मत है न ही तर्क सम्मत हम देखते आ रहे हैं कि अनुसूचित जाति की प्रथम सूचि जो कि 1936 में प्रकाशित हुई उस समय से ही खंगार जाति सागर और अन्य स्थान विशेष पर सूचीबद्ध है मैं यहाँ सांसद स्व. सहोदरा बाई के पराक्रम और उनकी सामाजिक सेवाओं पर कोई प्रश्न चिन्ह नही लगा रहा हूँ जो तथ्य सम्मत है तर्कसंगत है वही सत्य है और इस सत्य और तथ्य का वाचन प्रकाशन मेरा लक्ष्य है .. भवतु सब्ब मंगलम .....✍ अशोक सूर्यवेदी एडवोकेट , मऊरानीपुर
Sunday, December 23, 2018
हाँ मैं यौद्धेय हूँ , मैं खङ्गार हूँ !!
हाँ मैं यौद्धेय हूँ , मैं खङ्गार हूँ !
हाँ मैं यौद्धेय हूँ , मैं खङ्गार हूँ !!
मैं नाम, ग्राम, मैं हिमचोटि, मैं संज्ञा, मैं सर्वनाम
मैं ज्वालामुखी, हूँ भूगर्भ का ,क्रोध तमाम
हाँ मैं यौद्धेय हूँ , मैं खङ्गार हूँ !!
मैंने जहाँ जहाँ पग धरा , वे वीरों के पूज्य धाम
मैं जल में थल में नभ में सबका श्रृंगार हूँ
हाँ मैं यौद्धेय हूँ , मैं खङ्गार हूँ !!
कृति
अशोक सूर्यवेदी
मऊरानीपुर
Tuesday, July 17, 2018
रघबर जेल झाँसी
उनका नाम था रघबर , रखा तो रघुवर होगा पर जो चला सो चला रघबर ही चल पड़ा ! जाति के अहीर थे अहीर होते ही सीधे सादे और सरल थे सो रघबर भी ठेठ अहीर बिल्कुल सीधे सादे सरल और सच्चे ! अंग्रेजी शासन में एक मामले में फंस गए या फंसा दिए गए जो भी हो झाँसी में जेल काट रहे थे और जेल में ही एक रात सपने में देखा कि उनके घर भैंस ने बच्चा जना है और वे उसकी तेली खा रहे हैं ! रघबर के मुंह मे तेली की मिठास घुल गयी चटक कर उठे जुगत लगा कर जेल की दीवार पर जा चढ़े और और धम्म से कूंद फांद कर घर का रास्ता पकड़ लिया ! घर था मऊरानीपुर के पड़ौसी गांव रूपाधमना में , उन दिनों आवागमन के साधन ऐसे तो न थे जैसे आज हैं और जैसे थे वैसे भी रघबर को रात के सन्नाटे में तो नसीब न होने थे , भैंस और भैंस की तेली की लगन ऐसी कि बाबा तुलसीदास गुसाईं मायके गयी रत्ना से मिलने चले हों , लम्बी दूरी , सुनसान रास्ता, घुप्प अंधेरा और हहराती हुई बेतवा माता की अथाह जलराशि रघबर के हौसले न डिगा सके राह की दुश्वारियों को पैरों पैर नापते तैरते धमना जा धमके , देखा भैंस #बियाने ही वाली है ! पूरे मनोयोग से भैंस की सेवा सुश्रुषा की भैंस के बच्चे को पोंछपाँछ कर खड़ा किया भैंस ने उसे चाटा चूमा बच्चा अपने पैरों खड़ा हूँ , तो भैंस को अजवाइन की धूनी दी , मैथी मिला गुड़ खिलाया और उसकी जर (नाल) को साँप की बामी में डाल , बच्चे को उसके हक़ का थन उसे देकर आप बाल्टी लगा भैंस को दुहने बैठे थनों के निचोड़ने से निकली दोधारी सेटों की छन्न छन्न और फिर सर्र सर्र के मधुर संगीत ने #सार को संगीतमय कर लिया बाल्टी भरी ...धनी महाराज और कारसदेव को भोग लगाया फिर पतीला गोबर के उपलों से ज्वलित चूल्हे पर चढ़ा नारियल की गिरी , सोंठ काली मिर्च , और उपलब्ध मेवा मखानों के पुट से बनी स्वादिष्ट तेली ठंडी की गई ...चावल के साथ फिर रोटी के साथ फिर कई मर्तबा कटोरा भर भर यूँ ही चटखारे लेकर तेली का भोग लगा , 5 दिन तक तेली का भरपेट भोगलगा रघबर अपनी भैंस की सेवा सुश्रुषा कर वापिस झाँसी जेल के दरवाजे जा पहुंचे ... संतरी से कहा मुझे अंदर ले लो , संतरी ने न पहचाना , न कोई परवाना न कोई आदेश कैसे अंदर ले और क्यों ले , पूँछा कौन हो भाई क्यों आना है अंदर ?..बोले हम हैं रघबर हम अंदर ही थे ...जेलर आया शिनाख्त हुई भागा कैदी लौट आया , जेल प्रशासन परेशान रहा कैदी गया तो कहां गया पूँछा कहाँ चले गए थे कैसे गए थे क्यों गए थे ... ईमानदारी से जबाब मिला #भैंस_बियाने_ती_बररौटी_आई_तेली_खावे_गए_ते ...जेलर रघबर की ईमानदारी और सादगी पर मंत्रमुग्ध घोषणा कर दी ऐसा सज्जन और ईमानदार आदमी इसकी ईमानदारी मिसाल बने इसलिए आज से इस जेल को इस ईमानदार सज्जन कैदी के नाम पर रघबर जेल के नाम से जाना जाएगा और वाकायदा जेल को गजट में रघबर जेल घोषित किया गया...!!
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शब्द संयोजन
✍
अशोक सूर्यवेदी
Monday, May 28, 2018
रघबर जेल झाँसी
उनका नाम था रघबर , रखा तो रघुवर होगा पर जो चला सो चला रघबर ही चल पड़ा ! जाति के अहीर थे अहीर होते ही सीधे सादे और सरल थे सो रघबर भी ठेठ अहीर बिल्कुल सीधे सादे सरल और सच्चे ! अंग्रेजी शासन में एक मामले में फंस गए या फंसा दिए गए जो भी हो झाँसी में जेल काट रहे थे और जेल में ही एक रात सपने में देखा कि उनके घर भैंस ने बच्चा जना है और वे उसकी तेली खा रहे हैं ! रघबर के मुंह मे तेली की मिठास घुल गयी चटक कर उठे जुगत लगा कर जेल की दीवार पर जा चढ़े और और धम्म से कूंद फांद कर घर का रास्ता पकड़ लिया ! घर था मऊरानीपुर के पड़ौसी गांव रूपाधमना में , उन दिनों आवागमन के साधन ऐसे तो न थे जैसे आज हैं और जैसे थे वैसे भी रघबर को रात के सन्नाटे में तो नसीब न होने थे , भैंस और भैंस की तेली की लगन ऐसी कि बाबा तुलसीदास गुसाईं मायके गयी रत्ना से मिलने चले हों , लम्बी दूरी , सुनसान रास्ता, घुप्प अंधेरा और हहराती हुई बेतवा माता की अथाह जलराशि रघबर के हौसले न डिगा सके राह की दुश्वारियों को पैरों पैर नापते तैरते धमना जा धमके , देखा भैंस #बियाने ही वाली है ! पूरे मनोयोग से भैंस की सेवा सुश्रुषा की भैंस के बच्चे को पोंछपाँछ कर खड़ा किया भैंस ने उसे चाटा चूमा बच्चा अपने पैरों खड़ा हूँ , तो भैंस को अजवाइन की धूनी दी , मैथी मिला गुड़ खिलाया और उसकी जर (नाल) को साँप की बामी में डाल , बच्चे को उसके हक़ का थन उसे देकर आप बाल्टी लगा भैंस को दुहने बैठे थनों के निचोड़ने से निकली दोधारी सेटों की छन्न छन्न और फिर सर्र सर्र के मधुर संगीत ने #सार को संगीतमय कर लिया बाल्टी भरी ...धनी महाराज और कारसदेव को भोग लगाया फिर पतीला गोबर के उपलों से ज्वलित चूल्हे पर चढ़ा नारियल की गिरी , सोंठ काली मिर्च , और उपलब्ध मेवा मखानों के पुट से बनी स्वादिष्ट तेली ठंडी की गई ...चावल के साथ फिर रोटी के साथ फिर कई मर्तबा कटोरा भर भर यूँ ही चटखारे लेकर तेली का भोग लगा , 5 दिन तक तेली का भरपेट भोगलगा रघबर अपनी भैंस की सेवा सुश्रुषा कर वापिस झाँसी जेल के दरवाजे जा पहुंचे ... संतरी से कहा मुझे अंदर ले लो , संतरी ने न पहचाना , न कोई परवाना न कोई आदेश कैसे अंदर ले और क्यों ले , पूँछा कौन हो भाई क्यों आना है अंदर ?..बोले हम हैं रघबर हम अंदर ही थे ...जेलर आया शिनाख्त हुई भागा कैदी लौट आया , जेल प्रशासन परेशान रहा कैदी गया तो कहां गया पूँछा कहाँ चले गए थे कैसे गए थे क्यों गए थे ... ईमानदारी से जबाब मिला #भैंस_बियाने_ती_बररौटी_आई_तेली_खावे_गए_ते ...जेलर रघबर की ईमानदारी और सादगी पर मंत्रमुग्ध घोषणा कर दी ऐसा सज्जन और ईमानदार आदमी इसकी ईमानदारी मिसाल बने इसलिए आज से इस जेल को इस ईमानदार सज्जन कैदी के नाम पर रघबर जेल के नाम से जाना जाएगा और वाकायदा जेल को गजट में रघबर जेल घोषित किया गया...!!
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शब्द संयोजन
✍
अशोक सूर्यवेदी
Tuesday, November 7, 2017
बौना चोर
कल्पित कुरियल गढ़ का सरदार था विक्रम सिंह राज समाज में उसकी बड़ी प्रतिष्ठा थी ! यश वैभव की कोई कमी न थी , कमी थी तो बस उत्तराधिकारी की ! विक्रम सिंह उम्र के ढलान पर आ गया था और राजदम्पत्ति अभी तक निःसंतान थे ! और यही चिंता राजा और प्रजा दोनों को सालती थी ! एक दिवस राजपुरोहित ने राजा को शारदा भवानी की साधना कर पुत्र प्राप्ति का सुझाव दिया ! राजा सहर्ष शारदा मठ में नियमपूर्वक साधना में रत हुआ ! साधना में लीन राजा को पूजा पाठ में कई दिवस मास बीते एक रोज पूजन सामग्री का अभाव हुआ पूजा का समय नजदीक था और इतने कम समय में पूजन सामग्री जुटाना दुष्कर हुआ तब राजा एक पुजारी के घर से पूजन सामग्री चुराकर लाया और होम धूप कर देवी का आह्वान करने लगा ! राजा की निरंतर पुकार और साधना से उस रोज देवी प्रसन्न हो प्रकट हुई और राजा से वरदान मांगने को कहा ! राजा ने साष्टांग देवी को प्रणाम कर विनय पूर्वक प्रार्थना कर वंश चलाने के लिए एक पुत्र प्रदान करने की याचना की , प्रसन्न भवानी ने भक्त की याचना स्वीकार करते हुए कहा :- हे राजन, तेरी रानी से तुझे एक पराक्रमी पुत्र प्राप्त होगा किन्तु तूने मेरी पूजा चोरी की सामग्री से की है इसलिए तेरा यह पुत्र चोरी चकारी के लिए प्रसिद्ध होगा और इसका यही रोजगार रहेगा ! इतना कहकर भवानी शारदा अदृश्य हुई और हर्षित राजा अपने महल को लौट आया ! देवी के वरदान से रानी की कोख का सूखा मिटा और रानी ने गर्भ धारण किया दिन बीते और नौ महीने की कालावधि पूर्ण होने पर रानी ने सुंदर बालक को जन्म दिया , महल में प्रसन्नता की लहर दौड़ गयी राजा ने खूब दान पुण्य किया रियासत में खूब मिष्ठान और धन धान्य बटा ! ज्योतिषी ने ग्रह नक्षत्रों का मिलान कर कुंडली बनाकर राजा को कहा कि कुमार बड़ी शुभ घड़ी में उत्पन्न हुआ है इसकी ग्रहदशा बताती है कि यह भारी बलवान और होशियार होगा पुष्य नक्षत्र में जन्मे इस बालक की दहशत सारे संसार मे व्याप्त होगी किन्तु एक ग्रहबाधा है जिसके अनुसार कुमार चोरी के रोजगार में संलग्न रहेगा और दूर दूर देश देशांतर में डाके डालेगा किन्तु कभी किसी के हाथ न आएगा संकट में शारदा सदा सहायक रहेंगी और जगत में यह कुमार बौना के नाम से मशहूर होगा ! ज्योतिषी की बात सुनकर राजा मुस्काया और उसने ज्योतिषी को दक्षिणा प्रदान कर विदा किया ! कुमार बौना का छठी दसटोन आदि मंगलाचार सब रश्में राजा ने बड़ी धूम धाम से की ! दिन दिन राजकुमार बड़ा होने लगा और सात वर्ष की आयु होते होते राजा ने राजा ने उसे पढ़ने को बिठाया पाठशाला में भवानी के वरदानी राज पूत की हरकतें प्रकट होने लगी , पाठशाला से वह कभी किसी सहपाठी का बस्ता किसी की कलम किसी की पाटी किसी की किताब चुराकर घर लाने लगा , राह चलते किसी भी बच्चे का सामान झटक लाता किसी के भी घर में हाथ साफ कर देता दिन दहाड़े ताले तोड़ना डाके डालना उसका रोज का काम हो गया और दिन महीने वर्ष बीतते बौना नामी डाकू होकर धन धान्य से सम्पन्न हो गया और बीस वर्ष का होते होते डाकुओं का सरदार बन गया ! डाकुओं की फौज लेकर बौना डाकू काबुल कंधार तक डाके डालता उसके भय से बामन राजा छप्पन सुआ सभी भयभीत थे ! उन्ही दिनों महोबा के बनाफर सरदारों बहुत बोलबाला था बौना ने उनसे मेल कर लिया और जंग संग में उनके साथ हो लिया अब बौना का नाम और अधिक फैल गया उसने अपने कौशल से बनाफरों के साथ मिलकर मांडू बांदीगढ़ कांसोगढ़ आदि लूट कर बड़े बड़े राजाओं का मानमर्दन किया ! बनाफर अगर कहीं फंस जाते तो बौना अपने चातुर्य से किसी भी राजा की कैद से पलक झपकते निकाल लाता ! सारे राजसमाज में शारदा के वरदानी और कुरियल गढ़ के सरदार बौना के नाम का डंका बज रहा था ! और राजसमाज में बौना अब बोनिया राय के नाम से मशहूर हो चुका था ......!!
आधार :- एम. सी. मटरूलाल कृत
"बौना का व्याह"
शब्द विन्यास :- अशोक सूर्यवेदी
चित्र:- आल्हा गायन से
Thursday, September 21, 2017
कृतघ्न औलादें
वृद्ध था पर बीमार नही था वह बुजुर्ग , उसके चेहरे पर गौरवशाली अतीत की आभा दमक रही थी , उसके शरीर पर स्वाभिमानी धवल वस्त्र थे जो उसकी अनवरत दृढ़ता और राष्ट्र को समर्पित सेवाओं के परिचायक थे ! सधे हुए कदम बढ़ाता वह बुजुर्ग चला आ रहा था अपने बच्चों को लिए अतीत से अनन्त की यात्रा पर और कि तभी नियति का रोड़ा रास्ते में आया और बेपरवाह वृद्ध उसमें उलझकर कीचड़ में जा गिरा और सिर से पांव तक कीचड़ में सन गया उसके बच्चे जो उसके पीछे थे वे अपने पिता को इस हालत में पिता स्वीकार करने को भी राजी नही हुए और जिंदगी बिना पिता के नाम के जी पाना सभ्य समाज में कहाँ आसान होती है ! जिस पिता का स्वाभिमान से पूरित पोषित अकलंकता से युक्त वैभवशाली नाम था वह तो कीचड़ युक्त हो गया था और मूर्ख संतति उस आदर्श के शिखर को कीचड़ से बाहर निकालने की बजाय नया बाप तलाशने लगी , वर्तमान के शहर में एक जीन्स टी-शर्ट वाला नौजवान दिखा वृद्ध के बच्चे दौड़ कर पापा पापा कहते उसके पैरों से लिपट गए नौजवान भौचक्का उसे लगा अनाथ हैं शायद तो थोड़ी दया दिखा दी , पर नौजवान के बच्चे अपने पापा को किसी के साथ कैसे बाँटते सो जूते उठाये गए और वृद्ध के ढीठ हो चुके बेशरम बच्चे गाली जूते खाते और दूसरे के बाप को अपना बाप साबित करने की निरर्थक कोशिश करते रहे और कीचड़ में सना वृद्ध अपनी बेवसी पर आँसू बहाता रहा इस इंतजार में कि कभी तो कोई आकर मुझे इस कीचड़ से निकालेगा और पुनः स्थापित होगा मेरा मान सम्मान और स्वाभिमान ..............!!
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ब कलम
अशोक सूर्यवेदी
Saturday, September 9, 2017
शिक्षा मित्र
गृहस्थी तो क़स्बे में बसा रखी थी और पढ़ाने गाँव में जाना होता था सो मैडम के शौहर ने मैडम की शान के अनुरूप स्कूटी का प्रबंध करा दिया अब मैडम का मानदेय तो था दो हजार रुपया मात्र और स्कूटी का खर्चा ढाई हजार महीने का और ऊपर से मैडम के चेहरे की चमक बनाये रखने का ब्यूटी पार्लर का खर्चा अलग कुल मिलाकर आमदनी अठन्नी और खर्चा रुपैया , अंटी तो ढीली रमजान की होनी थी सो खूब हो रही थी और रमजान भी तनिक गिला न करता कारण कि जैसे डॉक्टर की बीबी को पड़ौसने डॉक्टरनी बुलाती हैं ठीक वैसे ही रहमान को यार दोस्त "मास्साब" कहने लगे थे सो गिला तो होना ही न था और वैसे भी कहावत है नाम दरोगा धर दो भले वेतन अठन्नी कर दो कुलमिलाकर रमजान मास्साब शान में भूले बसूला ही चलाते रहे और मैडम सहकर्मी शिक्षामित्र की पर्सनाल्टी पर आशक्त होती गयीं ! नैनों ने कब इशारों इशारों में दिल की हसरतें बयां कर दी और शिक्षामित्रों को एक दूसरे के आगोश में ला दिया किसी को पता ही न चला लेकिन नेह के नैन और इत्र की चोरी भला कब तक छिपते सो स्टाफ में कानाफूसी तेज हो गयी हेडमास्टर ने समझाने की कोशिश की तो आशनाई के रथ पर सवार प्रेमियों ने उसे कायदे से धमका डाला चूँकि शिक्षामित्र अपनी हुड़दंग नेतागिरी के लिए खासे चर्चित हैं सो साठ हजार वेतन पाने वाला हेडमास्टर दो हजार मानदेय वाले शिक्षा मित्रों के मामले में बिलकुल शांत हो गया ! और शिक्षामित्र जोड़े की रंगीनियाँ खुलकर फरुक्खावादी हो गयीं ! सहकर्मी शिक्षामित्र के व्यक्तित्व के आगे अब भला बसूला वाला अँगूठाटेक रमजान कहाँ भाता सो मैडम घर में होकर भी रमजान से कटी कटी रहने लगीं और घर में भी ज्यादातर समय स्मार्टफोन पर बिताकर सुबह जल्दी ही स्कूल जाकर देर शाम घर आने लगीं !
इसी बीच सूबे की सरकार ने वोटों के लालच में सारे मानकों , नियमों और अध्यादेशों को धता बता कर शिक्षामित्रों को सहायक अध्यापक का तोहफा दे डाला और शिक्षा मित्र दो हजार के मानदेय से उछलकर ३५ हजार की वेतन को प्राप्त हो गए ! सहायक अध्यापक के पद और वेतन के आगे अब रमजान का बसूला निश्चित रूप से बहुत छोटा पड़ गया था ! प्रेमी जोड़े को प्यार की पींगें बढ़ाने के लिए अब सारी बाधाएँ पार होती नजर आने लगीं थीं अब दोनों सहायक अध्यापक हो चुके शिक्षामित्र अपनी दुनिया अपनी गृहस्थी बसाना चाह रहे थे और कोई बाधा बची भी थी तो वो थी रमजान और परवीन की शादी जिसे तोडना जरुरी था परवीन ने रमजान से सीधे शब्दों में तलाक माँगते हुए कहा नहीं हो तुम मेरे लायक ,नहीं रहना है तुम्हारे साथ , दे दो मुझे तलाक़, जीने दो मुझे अपनी जिंदगी....... . नेकदिल इंसान था रमजान बहुत प्यार था बीबी से बच्चों में बसती थी उसकी जान , सुनकर हुआ हैरान परेशान बोला मेरी जान , होश में आओ , क्या कहेंगे परिवार और पड़ौसी , क्या मुंह दिखाएंगे हम समाज और रिश्तेदारों को , बच्चे बड़े हो गए हैं कुछ उनका तो सोचो बड़की हो गयी है सोलह साल की उसे जल्द ही डोली में बिठाना है और तुम्हें अब अपना नया आशियाना सजाना है ? कुछ तो तरस खाओ मोहतरमा , मुझे यूँ रुसवा न करो कुछ तो अल्लाह से डरो ,पर प्रेम की मादक मदिरा में मदहोश परवीन को न कुछ समझ आया और न ही उसने कुछ समझाना ही चाहा ! घर जंग का मैदान बन गया खूब बर्तन बजे खूब तमाशा हुआ पर रमजान के मुंह से तीन बार तो क्या एक बार भी तलाक न निकला और परवीन की मज़बूरी ये कि मजहबी कानून ने उसे तीन तलाक का हक़ अदा नहीं किया वर्ना कब की तीन बार ता ता ता कह कर खिसक ली होती ! बड़े बुजुर्ग बैठे समझाईशो के दौर चले पर कोई फर्क न पड़ा परवीन के वालिद एक दशक पहले ही अल्लाह को प्यारे हो गए थे और परवीन ने अपनी अम्मा को अपने रंग में कायदे से उतार लिया था सो सारी समझाइशें बेकार होनी ही थीं सो होकर रहीं ! मसला जब घर वालों से न सम्हला सो कचहरी के दरवाजे आन खड़ा हुआ , इधर वकील साहब ने मुक़दमें की कमान सम्हाली और उधर देश के उच्चतम न्यायालय ने विचाराधीन शिक्षामित्रों के सहायक अध्यापक नियुक्त किये जाने पर फैसला सुनाते हुए सूबे के शिक्षामित्रों की सहायक अध्यापक के तौर पर नियुक्ति को गैर क़ानूनी करार दिया और उन्हें सहायक अध्यापक के पद से अपदस्थ कर दिया ! सुप्रीम कोर्ट का फैसला प्रेमी शिक्षामित्र जोड़े पर गाज बनकर गिरा प्रेम का नशा काफूर हो गया प्रेमी शिक्षामित्र की चारपहिया गाड़ी कम्पनी वाले उठा ले गए मोटर साइकिल कर्जदारों ने छीन ली ! अब परवीन में न घर बसाने की तमन्ना बची थी न इश्क की अंगड़ाई अब सम्हालने को कुछ बचा था तो बस वो ही रमजान के बसूले का सहारा .... और इस तरह लौट के बुद्धू घर को आयी .....!!
शब्द संयोजन
अशोक सूर्यवेदी
एडवोकेट
मऊरानीपुर झाँसी