"मैं" कदाचित भाषा का या नही जीवन का सबसे घातक शब्द है जिसे कोई नही जानता और प्रत्येक इस "मैं" के अहम के वहम में गुम है !
चर्चा शब्द की पूँछ पकड़ कर आगे ही आगे बढ़ती है और हमेशा मूल विषय को खो देती है ...इसलिए लेखनी को मूल विषय "खंगार जाति के उद्भव" की ओर लाता हूँ ...
"भाट कथाएं" व्यक्ति को गुमराह करतीं हैं लेकिन मानव उनसे गौरवानवित होता है और कदाचित यही कारण है कि इस देश की बड़ी आबादी को किसी एक जाति ने अपनी सम्मोहिनी में फांस लिया.... जो भी जाति क्षत्रिय है या खुद को समझती है अथवा कहती है उन सबसे दान दक्षिणा की प्रत्याशा लेकर एक प्रान्त के लोग गाहे बगाहे उनके दरवाजों पर मिल जाते हैं ...
विषय बार बार भटक रहा है प्रिय साथियों से क्षमा चाहता हूँ ... लेकिन गद्य लेखन की समस्या यह है कि चर्चा शब्द की पूंछ पकड़ती है और जिसका प्रधान भी "मन की बात " करने संचार माध्यमों पर आए तो उस राष्ट्र का बेटा भला दिल का ज्वार कहाँ ले जाये ...???
खैर "खंगार" बंधु बांधव अब नाराज हो ही न जाएं इसलिए मूल विषय को पकड़ ही लेता हूँ ...
एक प्रोफेसर साहब थे भगवान करे अभी भी हों हालाँकि संभावना तो नही है... फिर भी ईश्वर से उनकी सलामती की दुआ मांगते हुए बताता हूँ उन श्रीमन का नाम था ,भगवान करे हो "पंडित जगन्नाथ प्रसाद शर्मा" जिन्होंने खंगार शब्द की व्युत्पत्ति खंगालते हुए ये कहा कि खड्ग वतुप = खड्गवत(खग्ग)=खड़गवान =खंगवाल(खंगवाला) = खंग + आर ... अब भगवान गोरेलाल मोरी खोपड़ी की रिक्षा महाराज सें करें इत्ते बराबर तो पुरवार साहब नें हमें गणित की कक्षा में नही पढ़ाये ... अब भैया प्रोफेसर तो होत प्रोफेसर जैसें हम हैं वकील अब ज्ञान शुरू बोले देखो एक भाषा होत प्राकृत उसमें व का लोप होकर र का ल हो जाता है ... वैसे पैदा तो हम भी हिंदी सें हैं लेकिन पाले पोसे मौसी के हैं सो तनक मनक नायें मायें हो सकत अकेलें महाराज तो खोपड़ी पै दौन्दरा देवे पै आमदा .. आगे बोले खंगार =खड्ग वाला मतलब खंग धारण करने वाला और अब महाराज कर रहे थे सब्र की इन्तिहा सो हमें भरन लगी गुस्सा , लेकिन हम पी गए ... वो नही सोचने ..😊 हमने फिर पूँछी पंडित जी हम गणित जानवे नहीं न बैठे और हिंदी बता रहे आप गणित में ... गणित कदाचित हो पर हिंदी मात्र गणित नही हो सकती ... महाराज ठहरे महाराज ताड़ गए लड़का औकात में आ सकता है संभव है इसलिए सीधे हिंदी व्याकरण में शुरू हुए बोले सुनो बालक , खंगार +अण (अ) ( अपत्यार्थ में आदि वृद्धि )= खांगर = खंगार की संतति ...एक तो हम महाराज के बराबर से परेशान हुए ...अब करें तो का करें छोटे पड़ गए सो चुप रह गए ... लेकिन शर्मा जी भी गुरु आदमी आखिरी में बोले खंगार शब्द का संबंध खंग या खड्गधारी जन से ही है ... हमने अपनी फट्टी समेटी महाराज के पाँव परे और दे भगे ( जे कथानक "संक्रमण शील बुंदेलखंड" किताब के अध्याय तृतीय में डॉ. श्यामसुंदर जी निगम ने लिखा है और इस किताब का छपने का खर्चा स्वयं प्रबुद्ध खंगार जनों ने ही उठाया था ......😃 लेकिन निगम साहब पहले वो पढ़े लिखे सज्जन हैं जिन्होंने खंगार जाति के इतिहास को खंगालने की कीमती कोशिश की इसलिए उनका सम्मान तो रहना ही चाहिये ... क्या है कि हमारी कोशिश को खंगार बंधु जरूर पढ़ेंगे इसलिए उनसे विनम्रता पूर्वक निवेदन करना है कि नामों का सम्मान करें ...🙏
डॉक्टर साहब ने तमाम स्त्रोतों को खंगाला बस कुछ मेरे लिए छोड़ दिये इतिहासकार थे रजिस्टर्ड उनको हक़ था अपना मत व्यक्त करने का सो किये और कहा कि खंगार भारतीय मूल के हैं कहीं विदेश से नही आये हैं , उनका केंद्र बुंदेलखंड ही था , वे क्षत्रियत्व से भरे हैं लेकिन वे किसी निश्चित क्षत्रिय वंश से उत्पन्न नही हैं , खंगार योद्धा थे और उनका आयुध खंग यानि तलवार तलवार था जहाँ उनको यश पद आजीविका प्राप्त होती थी उसके साथ हो लेते थे .... डॉक्टर निगम साहब की बातें मायने रखती हैं और उनको समझना जरूरी है उन्होंने विश्लेषण कर अपना पहला मत दिया कि खंगार भारतीय मूल के हैं कहीं विदेश से नही आये हैं अब मसला यह है कि भारत जो है यानि भारत that is india और इंडिया में पाँच कोस पर बोली और राज बदल जाता था और खंगार जाति का केंद्र बुंदेलखंड तो स्पष्ट है कि खंगार गुजरात से तो बिल्कुल नही आये ये डॉक्टर साहब ने विश्लेषण कर के साबित किया आगे उन्होंने ही माना जो हम अपने "यौद्धेय खंगार" नामक आलेख में लिख चुके हैं कि खंगार जाति मूलतः यौद्धेय है जिसकी पुष्टि पाणिनि की अष्टाध्यायी और भगवान बुद्ध के अगण पिट्ट के सुत्त से होती है और जब भगवान बुद्ध के समय में खंगार की बात हुई तो स्पष्ट है कि वो आधुनिक क्षत्रियों से नही निकला ! भारत जो कि इंडिया रहा है सो उस इंडिया के प्रशासकों ने इंडिया के लोगों पर शासन करने के लिए बड़ी मजेदार और रोचक कथायें गढ़ीं या गढ़वाईं ...
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