वृद्ध था पर बीमार नही था वह बुजुर्ग , उसके चेहरे पर गौरवशाली अतीत की आभा दमक रही थी , उसके शरीर पर स्वाभिमानी धवल वस्त्र थे जो उसकी अनवरत दृढ़ता और राष्ट्र को समर्पित सेवाओं के परिचायक थे ! सधे हुए कदम बढ़ाता वह बुजुर्ग चला आ रहा था अपने बच्चों को लिए अतीत से अनन्त की यात्रा पर और कि तभी नियति का रोड़ा रास्ते में आया और बेपरवाह वृद्ध उसमें उलझकर कीचड़ में जा गिरा और सिर से पांव तक कीचड़ में सन गया उसके बच्चे जो उसके पीछे थे वे अपने पिता को इस हालत में पिता स्वीकार करने को भी राजी नही हुए और जिंदगी बिना पिता के नाम के जी पाना सभ्य समाज में कहाँ आसान होती है ! जिस पिता का स्वाभिमान से पूरित पोषित अकलंकता से युक्त वैभवशाली नाम था वह तो कीचड़ युक्त हो गया था और मूर्ख संतति उस आदर्श के शिखर को कीचड़ से बाहर निकालने की बजाय नया बाप तलाशने लगी , वर्तमान के शहर में एक जीन्स टी-शर्ट वाला नौजवान दिखा वृद्ध के बच्चे दौड़ कर पापा पापा कहते उसके पैरों से लिपट गए नौजवान भौचक्का उसे लगा अनाथ हैं शायद तो थोड़ी दया दिखा दी , पर नौजवान के बच्चे अपने पापा को किसी के साथ कैसे बाँटते सो जूते उठाये गए और वृद्ध के ढीठ हो चुके बेशरम बच्चे गाली जूते खाते और दूसरे के बाप को अपना बाप साबित करने की निरर्थक कोशिश करते रहे और कीचड़ में सना वृद्ध अपनी बेवसी पर आँसू बहाता रहा इस इंतजार में कि कभी तो कोई आकर मुझे इस कीचड़ से निकालेगा और पुनः स्थापित होगा मेरा मान सम्मान और स्वाभिमान ..............!!
.
.
.
ब कलम
अशोक सूर्यवेदी
Thursday, September 21, 2017
कृतघ्न औलादें
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment