कल्पित कुरियल गढ़ का सरदार था विक्रम सिंह राज समाज में उसकी बड़ी प्रतिष्ठा थी ! यश वैभव की कोई कमी न थी , कमी थी तो बस उत्तराधिकारी की ! विक्रम सिंह उम्र के ढलान पर आ गया था और राजदम्पत्ति अभी तक निःसंतान थे ! और यही चिंता राजा और प्रजा दोनों को सालती थी ! एक दिवस राजपुरोहित ने राजा को शारदा भवानी की साधना कर पुत्र प्राप्ति का सुझाव दिया ! राजा सहर्ष शारदा मठ में नियमपूर्वक साधना में रत हुआ ! साधना में लीन राजा को पूजा पाठ में कई दिवस मास बीते एक रोज पूजन सामग्री का अभाव हुआ पूजा का समय नजदीक था और इतने कम समय में पूजन सामग्री जुटाना दुष्कर हुआ तब राजा एक पुजारी के घर से पूजन सामग्री चुराकर लाया और होम धूप कर देवी का आह्वान करने लगा ! राजा की निरंतर पुकार और साधना से उस रोज देवी प्रसन्न हो प्रकट हुई और राजा से वरदान मांगने को कहा ! राजा ने साष्टांग देवी को प्रणाम कर विनय पूर्वक प्रार्थना कर वंश चलाने के लिए एक पुत्र प्रदान करने की याचना की , प्रसन्न भवानी ने भक्त की याचना स्वीकार करते हुए कहा :- हे राजन, तेरी रानी से तुझे एक पराक्रमी पुत्र प्राप्त होगा किन्तु तूने मेरी पूजा चोरी की सामग्री से की है इसलिए तेरा यह पुत्र चोरी चकारी के लिए प्रसिद्ध होगा और इसका यही रोजगार रहेगा ! इतना कहकर भवानी शारदा अदृश्य हुई और हर्षित राजा अपने महल को लौट आया ! देवी के वरदान से रानी की कोख का सूखा मिटा और रानी ने गर्भ धारण किया दिन बीते और नौ महीने की कालावधि पूर्ण होने पर रानी ने सुंदर बालक को जन्म दिया , महल में प्रसन्नता की लहर दौड़ गयी राजा ने खूब दान पुण्य किया रियासत में खूब मिष्ठान और धन धान्य बटा ! ज्योतिषी ने ग्रह नक्षत्रों का मिलान कर कुंडली बनाकर राजा को कहा कि कुमार बड़ी शुभ घड़ी में उत्पन्न हुआ है इसकी ग्रहदशा बताती है कि यह भारी बलवान और होशियार होगा पुष्य नक्षत्र में जन्मे इस बालक की दहशत सारे संसार मे व्याप्त होगी किन्तु एक ग्रहबाधा है जिसके अनुसार कुमार चोरी के रोजगार में संलग्न रहेगा और दूर दूर देश देशांतर में डाके डालेगा किन्तु कभी किसी के हाथ न आएगा संकट में शारदा सदा सहायक रहेंगी और जगत में यह कुमार बौना के नाम से मशहूर होगा ! ज्योतिषी की बात सुनकर राजा मुस्काया और उसने ज्योतिषी को दक्षिणा प्रदान कर विदा किया ! कुमार बौना का छठी दसटोन आदि मंगलाचार सब रश्में राजा ने बड़ी धूम धाम से की ! दिन दिन राजकुमार बड़ा होने लगा और सात वर्ष की आयु होते होते राजा ने राजा ने उसे पढ़ने को बिठाया पाठशाला में भवानी के वरदानी राज पूत की हरकतें प्रकट होने लगी , पाठशाला से वह कभी किसी सहपाठी का बस्ता किसी की कलम किसी की पाटी किसी की किताब चुराकर घर लाने लगा , राह चलते किसी भी बच्चे का सामान झटक लाता किसी के भी घर में हाथ साफ कर देता दिन दहाड़े ताले तोड़ना डाके डालना उसका रोज का काम हो गया और दिन महीने वर्ष बीतते बौना नामी डाकू होकर धन धान्य से सम्पन्न हो गया और बीस वर्ष का होते होते डाकुओं का सरदार बन गया ! डाकुओं की फौज लेकर बौना डाकू काबुल कंधार तक डाके डालता उसके भय से बामन राजा छप्पन सुआ सभी भयभीत थे ! उन्ही दिनों महोबा के बनाफर सरदारों बहुत बोलबाला था बौना ने उनसे मेल कर लिया और जंग संग में उनके साथ हो लिया अब बौना का नाम और अधिक फैल गया उसने अपने कौशल से बनाफरों के साथ मिलकर मांडू बांदीगढ़ कांसोगढ़ आदि लूट कर बड़े बड़े राजाओं का मानमर्दन किया ! बनाफर अगर कहीं फंस जाते तो बौना अपने चातुर्य से किसी भी राजा की कैद से पलक झपकते निकाल लाता ! सारे राजसमाज में शारदा के वरदानी और कुरियल गढ़ के सरदार बौना के नाम का डंका बज रहा था ! और राजसमाज में बौना अब बोनिया राय के नाम से मशहूर हो चुका था ......!!
आधार :- एम. सी. मटरूलाल कृत
"बौना का व्याह"
शब्द विन्यास :- अशोक सूर्यवेदी
चित्र:- आल्हा गायन से