" श्री गणेशाय नमः "
महोबा प्रसिद्द है पान के लिए , वीरों की आन वान शान के लिए , आल्हा उदल की पहिचान के लिए और भुजरियों के सम्मान के लिए ! यही महोबा नगर जो आज उत्तर प्रदेश का एक जिला है कभी भारत का एक गौरव शाली नगर था वाक्पति , विद्याधर , धंग , गंड , और यशोवर्मन जैसे पराक्रमी चंदेल नरेशों की राजधानी , जिनकी यश गाथा अफगान से गुजरात तक विस्तारित थी !
११ वीं शताब्दी अपने समापन को उद्दत थी और चंदेलों से राजलक्ष्मी भी मुक्त होने को लालायित महोबा में राजा परमाल महान चंदेल नरेशों की वंश परम्परा में सत्ता सुंदरी पर आशक्त शासन की बाग़ डोर सम्हाले हुए थे राज रंग में डूबे राजा शस्त्र उठाने के काबिल तो न थे पर वीरों के सरताज जरुर थे , महाबली पराक्रमी योद्धाओं का उन्हें टोटा न था ! युद्ध उद्दत आल्हा उदल जैसे बनाफर सरदार महोबा के गौरवशाली ध्वज के वाहक थे ! जिनके कारण चनेलों का यह प्रदेश उत्तर भारत की teen प्रमुख शक्तियों में स्थापित था किन्तु सत्ता सुंदरी तो मानो चंदेलों से ऊब चुकी थी !
समुद्र शिखर से इच्छनी कुमारी को ब्याह दिल्ली लौट रहे संभरीनाथ प्रथ्वी राज चौहान के सुलतान मुहम्मद गौरी से युद्ध में घायल सैनिक मार्ग भटक कर महोबा आ पहुंचे और राजसी उद्यान में आ ठहरे ! राज ने सुना तो तुनक गया तिलमिला कर हरिदास बाघेला के साथ चुने हुए जाँगरा जादव सोलंकी गहरवार गोहिल और बनाफर यूथपों को चौहान सैनिकों को दण्डित करने का हुकुम दे रवाना किया हरिदास बाघेला एक हजार वीरों का समूह ले उद्यान में चौहान सैनिकों को ललकारा ! गजनी के सुलतान को सहज ही बाँधने वाले चौहान के सैनिक युद्ध का आह्वान सुन कैसे चुप रहते दोनों और से तलवारें खिचीं रन चंडी का खप्पर चंदेल सैनिकों के रक्त से भर दिया गया ........................
महोबा प्रसिद्द है पान के लिए , वीरों की आन वान शान के लिए , आल्हा उदल की पहिचान के लिए और भुजरियों के सम्मान के लिए ! यही महोबा नगर जो आज उत्तर प्रदेश का एक जिला है कभी भारत का एक गौरव शाली नगर था वाक्पति , विद्याधर , धंग , गंड , और यशोवर्मन जैसे पराक्रमी चंदेल नरेशों की राजधानी , जिनकी यश गाथा अफगान से गुजरात तक विस्तारित थी !
११ वीं शताब्दी अपने समापन को उद्दत थी और चंदेलों से राजलक्ष्मी भी मुक्त होने को लालायित महोबा में राजा परमाल महान चंदेल नरेशों की वंश परम्परा में सत्ता सुंदरी पर आशक्त शासन की बाग़ डोर सम्हाले हुए थे राज रंग में डूबे राजा शस्त्र उठाने के काबिल तो न थे पर वीरों के सरताज जरुर थे , महाबली पराक्रमी योद्धाओं का उन्हें टोटा न था ! युद्ध उद्दत आल्हा उदल जैसे बनाफर सरदार महोबा के गौरवशाली ध्वज के वाहक थे ! जिनके कारण चनेलों का यह प्रदेश उत्तर भारत की teen प्रमुख शक्तियों में स्थापित था किन्तु सत्ता सुंदरी तो मानो चंदेलों से ऊब चुकी थी !
समुद्र शिखर से इच्छनी कुमारी को ब्याह दिल्ली लौट रहे संभरीनाथ प्रथ्वी राज चौहान के सुलतान मुहम्मद गौरी से युद्ध में घायल सैनिक मार्ग भटक कर महोबा आ पहुंचे और राजसी उद्यान में आ ठहरे ! राज ने सुना तो तुनक गया तिलमिला कर हरिदास बाघेला के साथ चुने हुए जाँगरा जादव सोलंकी गहरवार गोहिल और बनाफर यूथपों को चौहान सैनिकों को दण्डित करने का हुकुम दे रवाना किया हरिदास बाघेला एक हजार वीरों का समूह ले उद्यान में चौहान सैनिकों को ललकारा ! गजनी के सुलतान को सहज ही बाँधने वाले चौहान के सैनिक युद्ध का आह्वान सुन कैसे चुप रहते दोनों और से तलवारें खिचीं रन चंडी का खप्पर चंदेल सैनिकों के रक्त से भर दिया गया ........................
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