अशोक सूर्यवेदी
समग्र
Saturday, September 18, 2021
खंगार जाति का उद्भव
Friday, September 18, 2020
प्रथम खंगार
Saturday, July 18, 2020
कुत्ते का बोझ
Sunday, September 29, 2019
लतीफा
Tuesday, September 3, 2019
आरक्षण में खंगार जाति ... एक अन्वेषण
भारत में राजकीय तौर पर दमित वर्ग के उत्थान के लिए आरक्षण की व्यवस्था का पहला उदाहरण कोल्हापुर नरेश शाहू जी महाराज के शासन में देखने मिलता है जिन्होंने सर्व प्रथम सन 1902 में पिछड़े वर्ग से गरीबी दूर करने और राज्य प्रशासन में उनकी हिस्सेदारी सुनिश्चित करने के लिए अधिसूचना जारी की कालांतर में ब्रिटिश शासन के दौरान जिन तमाम महपुरुषों ने जाति वर्ग भेद की असमानता दूर करने के लिए अथक प्रयास किये उनमे सबसे बड़ा नाम और योगदान बाबा साहब डॉ. भीमराव रामजी आंबेडकर का है ! सन 1927 में 7 सदस्यीय ब्रिटिश सांसदों का समूह सर जॉन साइमन के नेतृत्व में भारत में संविधान सुधारों के अध्ययन के लिए भारत आया जिसे साइमन कमीशन के नाम से जाना जाता है ! भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और मुस्लिम लीग के कड़े विरोध के बाबजूद भी डॉ. आंबेडकर अपने दलित शोषित वर्ग के कल्याण के लिए कमीशन के सामने प्रस्तुत हुए ! यहीं से भारत में आरक्षण के युग का सूत्रपात हुआ ! डॉ. आंबेडकर दलित जातियों के लिए नौकरियों और राजनीति में विशेष आरक्षण चाहते थे , डॉ. साहब के दलित की परिभाषा में समाज का वह वर्ग मात्र ही शामिल था जो सामाजिक तौर पर सदियों से छुआ छूत का जबरजस्त शिकार था जबकि सर साइमन क्रिमिनल ट्राइब्स आपराधिक जनजातियां जो की वास्तविक अर्थों में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थीं जिन्होंने 1857 का विद्रोह खड़ा किया जिनके दमन के लिए 1872 में अंग्रेजी हुकूमत ने क्रिमिनल ट्राइब्स एक्ट बनाकर उन्हें अपराधी जाति नामित किया को और पर्वतीय जनजातियों को दलित शब्द की परिभाषा में शुमारकर उनके उन्ययन का रास्ता प्रशस्त करने के पक्षधर थे कदाचित डॉ. आंबेडकर को क्रिमिनल ट्राइब्स जिन्हेंआज विमुक्त जाति के नाम से जाना जाता है से कोई सहानुभूति न थी और वह आरक्षण के लिए सिर्फ अस्यपृश्य जनों को ही पात्र मानते थे किन्तु सर साइमन केआग्रह या कि दबाव को वो टाल सकने में सक्षम न थे तथापि उन्होंने साइमन की उपेक्षा न करते हुए भी इन जातियों की उपेक्षा करने में कोई कोताही न बरती आरक्षण की हक़दार जातियों का मसौदा उन्होंने ही तय किया और भारी मन से सेंट्रल प्रोवेंसी की सूचि में खंगार जाति को भंडरा सागर , बुलढ़ाना और होशंगाबाद की सेओनी मालवा तहसील मात्र में सूचीबद्ध किया ! यह भारत सरकार (अनुसूचित जाति) आदेश 1936 के द्वारा अधिनियमित हुआ जिसमें खंगार जाति को सेंट्रल प्रोवेंसी के भंडरा बुलढाणा सागर और होशंगाबाद की सेओनी मालवा तहसील मात्र में अनुसूचित किया गया यही सेंट्रल प्रोवेंसी बाद में मध्यप्रदेश राजस्थान और महाराष्ट्र बना ! खंगार जाति बहुतायत में यूनाइटेड प्रोवेंसी में भी निवासरत थी किंतु बाबा साहब ने उनकी घोर उपेक्षा की सेंट्रल प्रोवेंसी में अधिनियमित करना उनकी मजबूरी और जरूरत भी कही जा सकती है कारण कि वो बॉम्बे से जनप्रतिनिधित्व करते थे जो कि सेंट्रल प्रोवेंसी का हिस्सा था और अपने फायदे के लिए अपने क्षेत्र के मतदाताओं को लुभाना कौन नही चाहता ... 11 अगस्त 1950 में प्रकाशित भारत सरकार के राजपत्र , संविधान (अनुसूचित जाति) आदेश में 21 वे स्थान पर बभंडरा बुलढ़ाणा और सागर जिले में एवं होशंगाबाद और और होशंगाबाद की सेवनी मालवा तहसील में खंगार अनुसूचित जाति की सूचि में शुमार रहा आगे चलकर यही व्यवस्था राज्यों के पुनर्गठन के बाद 29 अक्टूबर 1956 में राष्ट्रपति के आदेश से भारत के राजपत्र में अनुसूचित जाति और जनजाति सूचि (संशोधित)आदेश 1956 प्रकाशित हुआ जिसके अनुसार खंगार जाति के साथ मध्यप्रदेश के सागर और होशंगाबाद की सेवनी मालवा तहसील में मिर्धा और कनेरा जाति को 11 वें नम्बर पर सूचीबद्ध किया गया राजस्थान जहाँ खंगार जाति की संख्या लगभग नगण्य है वहाँ सिरोही जनपद को छोड़कर पूरे प्रान्त में एवं बॉम्बे के भंडरा और बुलढाणा जिले में 6वें क्रमांक पर खंगार जाति के साथ मिर्धा और कनेरा को सूचिबद्ध किया गया ! 20 सितम्बर 1976 को प्रकाशित राजपत्र अनुसूचित जाति एवं जनजाति संशोधित आदेश 1976 में सम्पूर्ण मध्यप्रदेश राजस्थान एवं महाराष्ट्र प्रान्त में अनुसूचित जाति के तहत आरक्षित किया गया ! खंगार जाति में यह धारणा प्रचलित है कि खंगार जाति को आरक्षण सागर से पूर्व सांसद स्व.श्रीमती सहोदरा बाई राय ने दिलवाया इस धारणा के पीछे लोग उनके गोवा मुक्ति संग्राम में दिखाए अपूर्व पराक्रम का जिक्र करते हुए बताते हैं कि तत्कालीन पंडित नेहरू सरकार ने उन्हें संसद पहुँचाने के लिए उनके जनपद सागर को अनुसूचित जाति में आरक्षित किया जिससे वे सुगमता से संसद की सीढ़ी चढ़ सकें , यह धारणा न तो इतिहास सम्मत है न ही तर्क सम्मत हम देखते आ रहे हैं कि अनुसूचित जाति की प्रथम सूचि जो कि 1936 में प्रकाशित हुई उस समय से ही खंगार जाति सागर और अन्य स्थान विशेष पर सूचीबद्ध है मैं यहाँ सांसद स्व. सहोदरा बाई के पराक्रम और उनकी सामाजिक सेवाओं पर कोई प्रश्न चिन्ह नही लगा रहा हूँ जो तथ्य सम्मत है तर्कसंगत है वही सत्य है और इस सत्य और तथ्य का वाचन प्रकाशन मेरा लक्ष्य है .. भवतु सब्ब मंगलम .....✍ अशोक सूर्यवेदी एडवोकेट , मऊरानीपुर
Sunday, December 23, 2018
हाँ मैं यौद्धेय हूँ , मैं खङ्गार हूँ !!
हाँ मैं यौद्धेय हूँ , मैं खङ्गार हूँ !
हाँ मैं यौद्धेय हूँ , मैं खङ्गार हूँ !!
मैं नाम, ग्राम, मैं हिमचोटि, मैं संज्ञा, मैं सर्वनाम
मैं ज्वालामुखी, हूँ भूगर्भ का ,क्रोध तमाम
हाँ मैं यौद्धेय हूँ , मैं खङ्गार हूँ !!
मैंने जहाँ जहाँ पग धरा , वे वीरों के पूज्य धाम
मैं जल में थल में नभ में सबका श्रृंगार हूँ
हाँ मैं यौद्धेय हूँ , मैं खङ्गार हूँ !!
कृति
अशोक सूर्यवेदी
मऊरानीपुर
Tuesday, July 17, 2018
रघबर जेल झाँसी
उनका नाम था रघबर , रखा तो रघुवर होगा पर जो चला सो चला रघबर ही चल पड़ा ! जाति के अहीर थे अहीर होते ही सीधे सादे और सरल थे सो रघबर भी ठेठ अहीर बिल्कुल सीधे सादे सरल और सच्चे ! अंग्रेजी शासन में एक मामले में फंस गए या फंसा दिए गए जो भी हो झाँसी में जेल काट रहे थे और जेल में ही एक रात सपने में देखा कि उनके घर भैंस ने बच्चा जना है और वे उसकी तेली खा रहे हैं ! रघबर के मुंह मे तेली की मिठास घुल गयी चटक कर उठे जुगत लगा कर जेल की दीवार पर जा चढ़े और और धम्म से कूंद फांद कर घर का रास्ता पकड़ लिया ! घर था मऊरानीपुर के पड़ौसी गांव रूपाधमना में , उन दिनों आवागमन के साधन ऐसे तो न थे जैसे आज हैं और जैसे थे वैसे भी रघबर को रात के सन्नाटे में तो नसीब न होने थे , भैंस और भैंस की तेली की लगन ऐसी कि बाबा तुलसीदास गुसाईं मायके गयी रत्ना से मिलने चले हों , लम्बी दूरी , सुनसान रास्ता, घुप्प अंधेरा और हहराती हुई बेतवा माता की अथाह जलराशि रघबर के हौसले न डिगा सके राह की दुश्वारियों को पैरों पैर नापते तैरते धमना जा धमके , देखा भैंस #बियाने ही वाली है ! पूरे मनोयोग से भैंस की सेवा सुश्रुषा की भैंस के बच्चे को पोंछपाँछ कर खड़ा किया भैंस ने उसे चाटा चूमा बच्चा अपने पैरों खड़ा हूँ , तो भैंस को अजवाइन की धूनी दी , मैथी मिला गुड़ खिलाया और उसकी जर (नाल) को साँप की बामी में डाल , बच्चे को उसके हक़ का थन उसे देकर आप बाल्टी लगा भैंस को दुहने बैठे थनों के निचोड़ने से निकली दोधारी सेटों की छन्न छन्न और फिर सर्र सर्र के मधुर संगीत ने #सार को संगीतमय कर लिया बाल्टी भरी ...धनी महाराज और कारसदेव को भोग लगाया फिर पतीला गोबर के उपलों से ज्वलित चूल्हे पर चढ़ा नारियल की गिरी , सोंठ काली मिर्च , और उपलब्ध मेवा मखानों के पुट से बनी स्वादिष्ट तेली ठंडी की गई ...चावल के साथ फिर रोटी के साथ फिर कई मर्तबा कटोरा भर भर यूँ ही चटखारे लेकर तेली का भोग लगा , 5 दिन तक तेली का भरपेट भोगलगा रघबर अपनी भैंस की सेवा सुश्रुषा कर वापिस झाँसी जेल के दरवाजे जा पहुंचे ... संतरी से कहा मुझे अंदर ले लो , संतरी ने न पहचाना , न कोई परवाना न कोई आदेश कैसे अंदर ले और क्यों ले , पूँछा कौन हो भाई क्यों आना है अंदर ?..बोले हम हैं रघबर हम अंदर ही थे ...जेलर आया शिनाख्त हुई भागा कैदी लौट आया , जेल प्रशासन परेशान रहा कैदी गया तो कहां गया पूँछा कहाँ चले गए थे कैसे गए थे क्यों गए थे ... ईमानदारी से जबाब मिला #भैंस_बियाने_ती_बररौटी_आई_तेली_खावे_गए_ते ...जेलर रघबर की ईमानदारी और सादगी पर मंत्रमुग्ध घोषणा कर दी ऐसा सज्जन और ईमानदार आदमी इसकी ईमानदारी मिसाल बने इसलिए आज से इस जेल को इस ईमानदार सज्जन कैदी के नाम पर रघबर जेल के नाम से जाना जाएगा और वाकायदा जेल को गजट में रघबर जेल घोषित किया गया...!!
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शब्द संयोजन
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अशोक सूर्यवेदी