Saturday, September 18, 2021

खंगार जाति का उद्भव

मानवीय जिज्ञासा अपने अतीत के विषय में जानने को सदा सर्वदा उत्सुक रहती है ! हर कोई अपने उद्भव के बारे में जानना चाहता है ! मैं कौन हूँ , मैं कब , कैसे और कहाँ से आया हूँ ..??? कोई आध्यात्मिक गुरु हो या कोई भी पथ प्रदर्शक कदाचित आजतक इन सवालों के सटीक जबाब नही दे पाया है !  मैं स्वयं अपने सभी आचार्यों से अब तक इन मामलों में संतुष्ट नही हूँ ... मैं विविध शोसल मीडिया नेटवर्कस पर देखता रहता हूँ कि खंगार जाति के बंधु बांधव अपने उद्भव और विकास को लेकर अत्याधिक लालायित रहते हैं ! खंगार तो मैं भी कभी गजब का था ,किंतु वकील होते साथ ही खंगार मेरी जाति न होकर प्रिय विषय बन गया .. और न केवल खंगार बल्कि झाँसी ओरछा पन्ना खनियांधाना महेबा गढ़कुण्डार और समूचा बुंदेलखंड मय महाराज छत्रसाल से बब्बा जी गुरु वेदव्रत भूषण तक मेरे रक्त में प्रवाहित हैं ... 
"मैं" कदाचित भाषा का या नही जीवन का सबसे घातक शब्द है जिसे कोई नही जानता और प्रत्येक इस "मैं" के अहम के वहम में गुम है ! 
     चर्चा शब्द की पूँछ पकड़ कर आगे ही आगे बढ़ती है और हमेशा मूल विषय को खो देती है ...इसलिए लेखनी को मूल विषय "खंगार जाति के उद्भव" की ओर लाता हूँ ...

"भाट कथाएं" व्यक्ति को गुमराह करतीं हैं लेकिन मानव उनसे गौरवानवित होता है और कदाचित यही कारण है कि इस देश की बड़ी आबादी को किसी एक जाति ने अपनी सम्मोहिनी में फांस लिया.... जो  भी जाति क्षत्रिय है या खुद को समझती है अथवा कहती है उन सबसे दान दक्षिणा की प्रत्याशा लेकर एक प्रान्त के लोग गाहे बगाहे उनके दरवाजों पर मिल जाते हैं ... 
विषय बार बार भटक रहा है प्रिय साथियों से क्षमा चाहता हूँ ... लेकिन गद्य लेखन की समस्या यह है कि चर्चा शब्द की पूंछ पकड़ती है और जिसका प्रधान भी "मन की बात " करने संचार माध्यमों पर आए तो उस राष्ट्र का बेटा भला दिल का ज्वार कहाँ ले जाये ...???
खैर "खंगार" बंधु बांधव अब नाराज हो ही न जाएं इसलिए मूल विषय को पकड़ ही लेता हूँ ...
एक प्रोफेसर साहब थे भगवान करे अभी भी हों हालाँकि संभावना तो नही है... फिर भी ईश्वर से उनकी सलामती की दुआ मांगते हुए बताता हूँ उन श्रीमन का नाम था ,भगवान करे हो "पंडित जगन्नाथ प्रसाद शर्मा" जिन्होंने खंगार शब्द की व्युत्पत्ति खंगालते हुए ये कहा कि खड्ग वतुप = खड्गवत(खग्ग)=खड़गवान =खंगवाल(खंगवाला) = खंग + आर  ... अब भगवान गोरेलाल मोरी खोपड़ी की रिक्षा महाराज सें करें इत्ते बराबर तो पुरवार साहब नें हमें गणित की कक्षा में नही पढ़ाये ... अब भैया प्रोफेसर तो होत प्रोफेसर जैसें हम हैं वकील अब ज्ञान शुरू बोले देखो एक भाषा होत प्राकृत उसमें व का लोप होकर र का ल हो जाता है ... वैसे पैदा तो हम भी हिंदी सें हैं लेकिन पाले पोसे मौसी के हैं सो तनक मनक  नायें मायें हो सकत अकेलें महाराज तो खोपड़ी पै दौन्दरा देवे पै आमदा  .. आगे बोले खंगार =खड्ग वाला मतलब खंग धारण करने वाला  और अब महाराज कर रहे थे सब्र की इन्तिहा सो हमें भरन लगी गुस्सा , लेकिन हम पी गए ... वो नही सोचने ..😊  हमने फिर पूँछी पंडित जी हम गणित जानवे नहीं न बैठे और हिंदी बता रहे आप गणित में ... गणित कदाचित हो पर हिंदी मात्र गणित नही  हो सकती ... महाराज ठहरे महाराज ताड़ गए लड़का औकात में आ सकता है संभव है इसलिए सीधे हिंदी व्याकरण में शुरू हुए  बोले सुनो बालक , खंगार +अण (अ) ( अपत्यार्थ में आदि वृद्धि )= खांगर = खंगार की संतति  ...एक तो हम महाराज के बराबर से परेशान हुए ...अब  करें तो का करें छोटे पड़ गए सो चुप रह गए ... लेकिन शर्मा जी भी गुरु आदमी आखिरी में बोले खंगार शब्द का संबंध खंग या खड्गधारी जन से ही है ... हमने अपनी फट्टी समेटी महाराज के पाँव परे और दे भगे ( जे कथानक  "संक्रमण शील बुंदेलखंड" किताब के अध्याय तृतीय में डॉ. श्यामसुंदर जी निगम ने लिखा है और इस किताब का छपने  का खर्चा स्वयं प्रबुद्ध खंगार जनों ने ही उठाया था ......😃  लेकिन निगम साहब पहले वो पढ़े लिखे सज्जन हैं जिन्होंने खंगार जाति के इतिहास को खंगालने की कीमती कोशिश की इसलिए उनका सम्मान तो रहना ही चाहिये  ... क्या है कि हमारी कोशिश को खंगार बंधु जरूर पढ़ेंगे इसलिए उनसे विनम्रता पूर्वक निवेदन करना है कि नामों का सम्मान करें  ...🙏  
डॉक्टर साहब ने तमाम स्त्रोतों को खंगाला बस कुछ मेरे लिए छोड़ दिये इतिहासकार थे रजिस्टर्ड  उनको हक़ था अपना मत व्यक्त करने का सो किये और कहा कि खंगार भारतीय मूल के हैं कहीं विदेश से नही आये हैं , उनका केंद्र बुंदेलखंड ही था , वे क्षत्रियत्व से भरे हैं लेकिन वे किसी निश्चित क्षत्रिय वंश से उत्पन्न नही हैं , खंगार योद्धा थे और उनका आयुध खंग यानि तलवार तलवार था जहाँ उनको यश पद आजीविका प्राप्त होती थी उसके साथ हो लेते थे  .... डॉक्टर निगम साहब की बातें मायने रखती हैं और उनको समझना जरूरी है उन्होंने विश्लेषण कर अपना पहला मत दिया कि खंगार भारतीय मूल के हैं कहीं विदेश से नही आये हैं  अब मसला यह है कि भारत जो है यानि भारत that is  india और इंडिया में पाँच कोस पर बोली और राज बदल जाता था और खंगार जाति का केंद्र बुंदेलखंड तो स्पष्ट है कि खंगार गुजरात से तो बिल्कुल नही आये ये डॉक्टर साहब ने विश्लेषण कर के साबित किया आगे उन्होंने ही माना जो हम अपने "यौद्धेय खंगार"  नामक आलेख में लिख चुके हैं कि खंगार जाति मूलतः यौद्धेय है जिसकी पुष्टि  पाणिनि की अष्टाध्यायी और भगवान बुद्ध  के अगण पिट्ट के       सुत्त से होती है  और जब भगवान बुद्ध के समय में खंगार की बात हुई तो स्पष्ट है कि वो आधुनिक क्षत्रियों से नही निकला  ! भारत जो कि इंडिया रहा है सो उस इंडिया के प्रशासकों ने इंडिया के लोगों पर शासन करने के लिए बड़ी मजेदार और रोचक कथायें गढ़ीं या गढ़वाईं ... 

Friday, September 18, 2020

प्रथम खंगार

 समुद्र से घिरे  निर्जन द्वीप में देव नीरामिरंजन के सम्मुख अकस्मात ही एक दिन देवी अनामिका उपस्थित थीं । देवी अनामिका और देव नीरामिरंजन यानि ऊर्जा के परस्पर दो स्त्रोत याकि पुरुष और प्रकृति ... तो जैसे ही पुरूष प्रकृति से मिलता है तो सृजन घटित होता है तो देव नीरा मिरंजन और देवी की आँखें परस्पर चार हुईं और इन आँखों के संयोग से देवी गर्भवती हो गयीं । ठीक नौ महीने नौ घंटे बाद देवी ने एक कन्या को जन्म दिया जो कि प्रथम खंगार थी । जन्म देते ही देवी को अपनी अपरमित शक्तियों को खोने का डर सताया और उन्होंने उस सद्दजन्मा कन्या को समुद्र में समर्पित कर दिया देव नीरामिरंजन देवी के इस कृत्य को देख रहे थे और वे देवी के इस कृत्य से क्षुब्ध होकर उस सद्द जन्मा कन्या को समुद्र की अतल गहराइयों से बचाकर अपने साथ ले आये और पूरे मनोयोग से उसका पालन पोषण करने लगे ..देव नीरा मिरंजन ने उस कन्या को नाम दिया कंकाली  दिन महीने साल बीते और कंकाली जब बारह वर्ष की थी तब वह स्नान के लिए रोज की भांति समुद्र में गयी वह इस बात से अनभिज्ञ थी कि समुद्र में देव समूह विहाररत है उसने जैसे ही खुद को अनावृत्त कर समुद्र में स्नान के लिए प्रवेश किया कि देव समूह की दृष्टि में आ गयी  देव समूह नग्न कंकाली को देख ठहाका मारकर और जोर जोर से तालियाँ पीटकर हँसने लगे देव समूह की हरकत से क्षुब्ध कंकाली अपने घर लौट आई ... कंकाली के पिता देव नीरा मिरंजन जो की रोजाना उसे मुग़री के फूलों से तोलते थे उन्होंने आज क्षुब्ध कंकाली को गर्भवती पाया .. क्षुब्द कंकाली ने खुद को अपवित्र मानते हुए अपने पिता से गृह त्याग करने की इजाजत मांगी और घर से निकल कर अज्ञात दिशा में निकल पड़ी ...नौ माह लगातार चलते चलते कुरुवा द्वीप के जंगल में जा पहुंची जहाँ उसने एक साज के वृक्ष की छांव तले अपने बच्चों को जन्म दिया जन्मना शिशुओं की संख्या अत्यधिक थी  किन्तु उनमें से प्रमुख गोंड देव कोया देव केन्जू देव कांगजु देव आदि  हुए प्रथम खंगार कंकाली जनित कोया से खंगार   गोंड देव से गोंड और विभिन्न कंकाली पुत्रों से विभिन्न जातियों की उत्पत्ति हुई ....... कहते हैं कि कंकाली ने भी अपने पुत्रों की देख रेख नही की और वह उन्हें कुरुवा द्वीप के जंगल मे छोड़कर वापिस पितृ देव नीरा मिरंजन के पास लौट गई तब आदिदेव शंकर और पार्वती की नजर इन बच्चों पर पड़ी और इन्होंने ही इनका पालन पोषण किया कोया की खंगार संताने मध्य भारत सहित तमाम देशों तक फैल गयी 13000 पुरानी सुमेरियन सभ्यता का विस्तार भी कोया की खंगार संतानों ने ही किया खंगार दुनिया भर में विविध नामों से खुद को जानते हैं यथा खंगार खंडायित खडार छावा पर दुनिया उनको सुमेरियन नाम से जानती है !
 यह मिथ कथा 12 वीं शताब्दी में क्रिस्टोफ वॉन द्वारा अडीलवाद में गढ़ी गयी थी जो मुझ तक मेरे ब्रिटिश मित्र जोसेफ़ अम्योट पडजन द्वारा पहुंची ....





Saturday, July 18, 2020

कुत्ते का बोझ

जा रही थी बैलगाड़ी ,जुते थे बैल, हाँक रहा था किसान ,लदा था धान्य ! था किसान का कुत्ता ,चल रहा था साथ ... कुत्ते चला ही करते हैं मालिक के पीछे ..क्या अचरज की बात 😉 ...बदौलत बैलों की निर्देशन किसान का  जा रही थी गाड़ी ..धड़क धड़क ...  रास्ते में खड़े थे हम खामखा ... देखा माजरा ...गाड़ी पर किसान... गाड़ी में धान्य ... और जुते हुए बैल ..हम चकराए ... क्योंकि सीन थोड़ा और था बैलगाड़ी के नीचे हांफ रहा कुत्ता था ...और हम ठहरे पढ़े लिखे आदमी यानि बुद्धिजीवी  .. और ऊपर से बुद्ध के अनुगामी ... और शाक्यसिंह ने सिखाया है कि "सब जीव जगत के समान हैं" ... सो  सो सो सो  हमने कुत्ते को किया प्रणाम और पूँछा हे श्रीमान  ... बित्थे भर की जीभ निकाले आप काहे हांफ रहे हो जबकि गाड़ी की छांव में खड़े हो ..?? ...  भौंकने लगे ...भड़कने लगे .. गनीमत रही कि आदर के वशीभूत थे सो काटने नही दौड़े ... हमने तुरंत जोड़ लिए हाथ .. और जताते हुए आदर पूँछा भौंकने का कारण ... फिर जो बताया कुत्ता जी ने सुनकर आप हो सकते हैं हैरान ... हालांकि हमने बचाई अपनी जान ... कहा था श्रीमान ने  ..बने फिरते हो बुद्धिजीवी और हो एक नम्बर के बुद्धू अकल है नही और खड़े हो गए सामने चोंच लड़ाने .. ये बैलगाड़ी ,,,इसमें लदा धान्य ,, और ऊपर बैठा किसान ... और जुएँ में जुते दो बैल  ... और सबके नीचे खड़ा मैं ... इतना भार उठाये हूँ ... और तुम मिस्टर खामखा बुद्धिजीवी ! हमसे कर रहे हो सवाल कि बित्थे भर की जीभ निकाले काहे हांफ रहे हो ........ ???  फिर भाग लिए हम .. कुत्तों का क्या भरोसा .. साले अनपढ़ अनाड़ी काट लें तो 😉 .. और का ...😆😆😆😆😆

Sunday, September 29, 2019

लतीफा

अकबर  और बीरबल 

एक थे अकबर महान और महान क्यों थे यहाँ ये मुद्दा नहीं है ।  जैसे भी थे सरजमीन ए हिन्द के शहंशाह थे।  हुजूर बड़े मजाकिया और लतीफेखोर , कहते हैं हुजुरके दरबार में जीते जागते नौ रत्न यानि  नवरत्न  थे और उनमे से एक बीरबल महाराज भी थे।  तो हुआ यूँ कि एक दिन सुबह सबेरे बीरबल हुजूर के  इस्तक़बाल  में जा पहुंचे। दुआ सलाम की रस्मअदायगी के बाद सिलसिला ए बातचीत शुरू  हुआ और हुजूर ने बड़ी कुटिल मुस्कान बिखेरते हुए कहा - बीरबल मैंने आज एक बड़ा विचित्र ख्वाब देखा ।  बीरबल अपना चंट आदमी सट्ट से समझ गया बन्दा दिमाग का गोबर उगलने वाला है सो  पट्ट से बोला  हुजूर मैंने भी ऐसा ही कुछ ख्वाब रात में देखा  .. बादशाह ठहरा बादशाह बोला मैं पहले बोलूंगा । बीरबल को भी मौका मिल गया उसका गोबर उसके मुंह मलने का कहीं बीरबल को कह देता तू बोल तो बेचारा क्या सुनाता खैर जिल्ल ए इलाही शुरू हुए बिल्कुल रामसे ब्रदर्स की फिल्म के नायक की तरह भावभंगिमा बनाते  ... बीरबल मैं  और तुम दोनों जा रहे थे सुन्दर सरोवर के किनारे किनारे  सरोवर में सुंदर कमल तैर रहे थे बड़ी ही बासंती हवा बह  रही थी । अचानक से बिजली कड़की फिर घुप्प अँधेरा हो गया फिर बिजली चमकी मैंने तुम्हे देखा तुम्हारे पर निकल आये थे  और मेरे भी पर निकल आये थे फिर हम दोनों आसमान में उड़ने लगे । अहा बड़ा ही मनोहर दृश्य था आसमान से अपनी धरती का बड़ा मजा आ रहा था हम उड़ते ही जा रहे थे  उड़ते ही जा रहे थे कि कम्बखत फिर बिजली चमकी  और हमारे पंख गायब हो गए  । पंख गायब होते ही हम आसमान से अनजान जगह की ओर गिरने लगे।  गिरने से पहले मैंने देखा जमीन पर एक रसखान है यानि रस  की  खान और उससे कुछ ही दूर एक मलखान  तो बीरबल मैं  गिरने से पहले देखता हूँ कि तुम  मलखान में जा गिरे और मैं रसखान में  जा डूबा  उफ़ कैसा ख्वाब था ये , यार तुम मलखान में जा डूबे तभी मेरी आँख खुल गयी।  मैं तुम्हारे बारे में सोच ही रहा  था कि तुम आगये खैर तुम भी कुछ ख्वाब का कह रहे थे ?  सुनाओ क्या ख्वाब था रात तुम्हारा ?  हुजूर की इजाजत से बीरबल महाराज तुरंत नहले पर पहले  से ही दहला धरे बोल पड़े जहाँपनाह ख्वाब तो बिलकुल  यही था  जो आपने देखा मैं और आप ,वही सरोवर का किनारा और सरोवर में तैरते कमल ,  फिर वही बिजली का कड़कना और हमारे पर निकलना  , फिर आसमान की  वही उड़ान ,  फिर बिजली चमकना और हमारे पर गुल होना और हमारा नीचे  गिरना ,  सबकुछ महाराज वैसे का वैसा ही ...  हुजूर ए  आला का रसखान में और नाचीज का मलखान में डूबना सब वैसे  का वैसा ही।  बादशाह झल्लाया सब वैसा ही तो इसको रिपीट क्यों कर रहा है ? बीरबल बोला   किन्तु हुजूर मेरी आँख नहीं खुली और ख्वाब आगे भी चला  और आगे मैं क्या देखता हूँ  कि मैं मलखान से बाहर निकला और हुजूर रसखान से बाहर आये हम दोनों एक दूसरे की ओर बढे और एक दूसरे को चाटने लगे  जहाँपनाह आपके शरीर पर लगे रास की मिठास  का आनंद ले ही रहा कि कम्बख्त बीबी ने आकर जगा दिया और मैं फ़ौरन तैयार होकर हुजूर के इस्तक़बाल में हाजिर हो गया। .... 

Tuesday, September 3, 2019

आरक्षण में खंगार जाति ... एक अन्वेषण

आरक्षण में खंगार जाति ... एक अन्वेषण

भारत में राजकीय तौर पर दमित वर्ग के उत्थान के  लिए आरक्षण  की व्यवस्था का पहला उदाहरण कोल्हापुर   नरेश शाहू जी महाराज के  शासन में देखने  मिलता है  जिन्होंने सर्व प्रथम सन  1902  में पिछड़े वर्ग से गरीबी दूर करने और राज्य प्रशासन में उनकी हिस्सेदारी सुनिश्चित करने के लिए अधिसूचना जारी की  कालांतर में ब्रिटिश शासन के दौरान जिन  तमाम  महपुरुषों  ने जाति वर्ग भेद की असमानता दूर करने के लिए अथक प्रयास किये  उनमे सबसे बड़ा नाम और योगदान  बाबा साहब डॉ. भीमराव रामजी आंबेडकर का है ! सन 1927 में 7 सदस्यीय ब्रिटिश सांसदों का समूह सर जॉन साइमन के नेतृत्व में भारत में संविधान सुधारों के अध्ययन के लिए भारत आया जिसे साइमन कमीशन के नाम से जाना जाता है !  भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और मुस्लिम लीग के कड़े विरोध के बाबजूद भी डॉ. आंबेडकर अपने  दलित शोषित वर्ग के कल्याण के लिए  कमीशन के सामने प्रस्तुत हुए ! यहीं से भारत में आरक्षण के युग का सूत्रपात  हुआ ! डॉ. आंबेडकर  दलित जातियों के लिए नौकरियों और राजनीति में   विशेष आरक्षण चाहते थे , डॉ. साहब के दलित की परिभाषा में समाज का  वह वर्ग मात्र  ही  शामिल था जो सामाजिक तौर पर सदियों से  छुआ छूत का जबरजस्त   शिकार था जबकि सर साइमन क्रिमिनल ट्राइब्स  आपराधिक जनजातियां  जो की वास्तविक अर्थों में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थीं जिन्होंने 1857 का विद्रोह खड़ा किया जिनके दमन के लिए 1872 में अंग्रेजी हुकूमत ने क्रिमिनल ट्राइब्स एक्ट बनाकर उन्हें अपराधी जाति नामित किया   को  और पर्वतीय जनजातियों को दलित शब्द की परिभाषा में शुमारकर उनके उन्ययन का रास्ता प्रशस्त करने के पक्षधर थे कदाचित डॉ. आंबेडकर को क्रिमिनल ट्राइब्स जिन्हेंआज विमुक्त जाति के नाम से जाना जाता है से कोई सहानुभूति न थी और वह  आरक्षण के लिए सिर्फ अस्यपृश्य जनों को ही पात्र मानते थे किन्तु सर साइमन केआग्रह या कि दबाव को वो टाल सकने में सक्षम न थे तथापि उन्होंने साइमन की उपेक्षा न करते हुए भी इन जातियों की उपेक्षा करने में कोई कोताही न बरती आरक्षण की हक़दार जातियों का  मसौदा उन्होंने  ही तय किया और भारी मन से  सेंट्रल प्रोवेंसी की सूचि में खंगार जाति को भंडरा सागर , बुलढ़ाना और होशंगाबाद की सेओनी मालवा तहसील मात्र में  सूचीबद्ध किया ! यह भारत सरकार (अनुसूचित जाति) आदेश 1936 के द्वारा अधिनियमित हुआ जिसमें खंगार जाति को सेंट्रल प्रोवेंसी के भंडरा बुलढाणा सागर और होशंगाबाद की सेओनी मालवा तहसील मात्र में अनुसूचित किया गया यही सेंट्रल प्रोवेंसी बाद में मध्यप्रदेश राजस्थान और महाराष्ट्र बना ! खंगार जाति बहुतायत में यूनाइटेड प्रोवेंसी में भी निवासरत थी किंतु बाबा साहब ने उनकी घोर उपेक्षा की सेंट्रल प्रोवेंसी में अधिनियमित करना उनकी मजबूरी और जरूरत भी कही जा सकती है कारण कि वो बॉम्बे से जनप्रतिनिधित्व करते थे जो कि सेंट्रल प्रोवेंसी का हिस्सा था और अपने फायदे के लिए अपने क्षेत्र के मतदाताओं को लुभाना कौन नही चाहता ...  11 अगस्त 1950 में प्रकाशित भारत सरकार के राजपत्र , संविधान (अनुसूचित जाति) आदेश में 21 वे स्थान पर बभंडरा बुलढ़ाणा और सागर जिले में एवं होशंगाबाद और और होशंगाबाद की सेवनी मालवा तहसील में खंगार अनुसूचित जाति की सूचि में शुमार रहा आगे चलकर यही व्यवस्था  राज्यों के पुनर्गठन के बाद 29 अक्टूबर 1956 में राष्ट्रपति के आदेश से भारत के राजपत्र में अनुसूचित जाति और जनजाति सूचि (संशोधित)आदेश 1956 प्रकाशित हुआ जिसके अनुसार खंगार जाति के साथ मध्यप्रदेश के सागर और होशंगाबाद की सेवनी मालवा तहसील में  मिर्धा और कनेरा जाति को 11 वें नम्बर पर सूचीबद्ध किया गया राजस्थान जहाँ खंगार जाति की संख्या लगभग नगण्य है वहाँ सिरोही जनपद को छोड़कर पूरे प्रान्त में एवं बॉम्बे के भंडरा और बुलढाणा जिले में 6वें क्रमांक पर खंगार जाति के साथ मिर्धा और कनेरा को सूचिबद्ध किया गया ! 20 सितम्बर 1976 को प्रकाशित राजपत्र अनुसूचित जाति एवं जनजाति संशोधित आदेश 1976 में  सम्पूर्ण मध्यप्रदेश राजस्थान एवं महाराष्ट्र प्रान्त में अनुसूचित जाति के तहत आरक्षित किया गया ! खंगार जाति में यह धारणा प्रचलित है कि खंगार जाति को आरक्षण सागर से पूर्व सांसद स्व.श्रीमती सहोदरा बाई राय ने दिलवाया इस धारणा के पीछे लोग उनके गोवा मुक्ति संग्राम में दिखाए अपूर्व पराक्रम का जिक्र करते हुए बताते हैं कि तत्कालीन पंडित नेहरू सरकार ने उन्हें संसद पहुँचाने के लिए उनके जनपद सागर को अनुसूचित जाति में आरक्षित किया जिससे वे सुगमता से संसद की सीढ़ी चढ़ सकें , यह धारणा न तो इतिहास सम्मत है न  ही तर्क सम्मत हम देखते आ रहे हैं कि अनुसूचित जाति की प्रथम सूचि जो कि 1936 में प्रकाशित हुई उस समय से ही खंगार जाति सागर और अन्य स्थान विशेष पर सूचीबद्ध है मैं यहाँ सांसद स्व. सहोदरा बाई के पराक्रम और उनकी सामाजिक सेवाओं पर कोई प्रश्न चिन्ह नही लगा रहा हूँ जो तथ्य सम्मत है तर्कसंगत है वही सत्य है और इस सत्य और तथ्य का वाचन प्रकाशन मेरा लक्ष्य है .. भवतु सब्ब मंगलम .....✍ अशोक सूर्यवेदी एडवोकेट , मऊरानीपुर

Sunday, December 23, 2018

हाँ मैं यौद्धेय हूँ , मैं खङ्गार हूँ !!

अग्रन्य सुत्त के दिघ्घ निकाय का किरदार हूँ
हाँ  मैं यौद्धेय हूँ ,  मैं खङ्गार हूँ  !

न किसी ब्रह्म के पेट से  जन्मा , न छाती और भुजाओं से 
न अनल यज्ञ से प्रगट हुआ   ,  न ही शैल  शिराओं से 
मानव गति की प्रगति हेतु  ,  मैं जन रक्षण का जिम्मेवार हूँ 
हाँ मैं यौद्धेय हूँ ,  मैं खङ्गार हूँ  !!

जन रंजन से मैं राजन , क्षत्रिय हूँ क्षति रक्षण से 
खंगार हुआ हूँ असिधारण की कला विलक्षण से 
मैं देश धरम के अरियों पर  केवल  बज्र प्रहार  हूँ
हाँ मैं यौद्धेय हूँ ,  मैं खङ्गार हूँ  !!

मैं नाम, ग्राम, मैं हिमचोटि, मैं संज्ञा, मैं  सर्वनाम
मैं ज्वालामुखी,  हूँ  भूगर्भ का ,क्रोध तमाम 
सिमटूँ तो राख मात्र  ,विस्तृत अंतरिक्ष का गार हूँ
हाँ  मैं यौद्धेय हूँ , मैं खङ्गार हूँ  !!

मैं वीरों में श्रेष्ठ सुपूजित हूँ , मेरी कीर्ति के अनंत नाम
मैंने जहाँ जहाँ पग धरा  , वे वीरों के पूज्य धाम
मैं जल में थल में नभ में सबका श्रृंगार हूँ
हाँ मैं यौद्धेय हूँ , मैं  खङ्गार हूँ !!

कृति
अशोक सूर्यवेदी
मऊरानीपुर

Tuesday, July 17, 2018

रघबर जेल झाँसी

उनका नाम था रघबर , रखा तो रघुवर होगा पर जो चला सो चला रघबर ही चल पड़ा ! जाति के अहीर थे अहीर होते ही सीधे सादे और सरल थे सो रघबर भी ठेठ अहीर बिल्कुल सीधे सादे सरल और सच्चे ! अंग्रेजी शासन में एक मामले में फंस गए या फंसा दिए गए जो भी हो झाँसी में जेल काट रहे थे और जेल में ही एक रात सपने में देखा कि उनके घर भैंस ने बच्चा जना   है और वे उसकी तेली खा रहे हैं ! रघबर के मुंह मे तेली की मिठास घुल गयी चटक कर उठे जुगत लगा कर जेल की दीवार पर जा चढ़े और और धम्म से कूंद फांद कर घर का रास्ता पकड़ लिया ! घर था मऊरानीपुर के पड़ौसी गांव रूपाधमना में , उन दिनों आवागमन के साधन ऐसे तो न थे जैसे आज हैं और जैसे थे वैसे भी रघबर को रात के सन्नाटे में तो नसीब न होने थे  , भैंस और भैंस की तेली की लगन ऐसी कि बाबा तुलसीदास गुसाईं मायके गयी रत्ना से मिलने चले हों , लम्बी  दूरी , सुनसान रास्ता,  घुप्प अंधेरा और हहराती हुई बेतवा माता   की अथाह जलराशि रघबर के हौसले न डिगा सके  राह की दुश्वारियों को पैरों पैर नापते तैरते धमना जा धमके , देखा भैंस #बियाने ही वाली है ! पूरे मनोयोग से भैंस की सेवा सुश्रुषा की भैंस के बच्चे को पोंछपाँछ कर खड़ा किया भैंस ने उसे चाटा चूमा बच्चा अपने पैरों खड़ा हूँ , तो भैंस को अजवाइन की धूनी दी , मैथी मिला गुड़ खिलाया और उसकी जर (नाल) को साँप की बामी में डाल , बच्चे को उसके हक़ का थन उसे देकर आप बाल्टी लगा भैंस को दुहने बैठे थनों के निचोड़ने से निकली दोधारी सेटों की छन्न छन्न और फिर सर्र सर्र के मधुर संगीत ने #सार को संगीतमय कर लिया बाल्टी भरी ...धनी महाराज और कारसदेव को भोग लगाया फिर पतीला गोबर के उपलों से ज्वलित चूल्हे पर चढ़ा नारियल की गिरी , सोंठ काली मिर्च , और उपलब्ध मेवा मखानों के पुट से बनी स्वादिष्ट  तेली ठंडी की गई ...चावल के साथ फिर रोटी के साथ फिर कई मर्तबा कटोरा भर भर यूँ ही चटखारे लेकर तेली का भोग लगा , 5 दिन तक तेली का भरपेट भोगलगा रघबर अपनी भैंस की सेवा सुश्रुषा कर वापिस झाँसी जेल के दरवाजे जा पहुंचे ... संतरी से कहा मुझे अंदर ले लो , संतरी ने न पहचाना , न कोई परवाना न कोई आदेश कैसे अंदर ले और क्यों ले , पूँछा कौन हो भाई क्यों आना है अंदर ?..बोले हम हैं रघबर हम अंदर ही थे ...जेलर आया शिनाख्त हुई भागा कैदी लौट आया , जेल प्रशासन परेशान रहा कैदी गया तो कहां गया पूँछा कहाँ चले गए थे कैसे गए थे क्यों गए थे ... ईमानदारी से जबाब मिला #भैंस_बियाने_ती_बररौटी_आई_तेली_खावे_गए_ते ...जेलर रघबर की ईमानदारी और सादगी पर मंत्रमुग्ध घोषणा कर दी ऐसा सज्जन और ईमानदार आदमी इसकी ईमानदारी  मिसाल बने इसलिए आज से इस जेल को इस ईमानदार सज्जन कैदी के नाम पर रघबर जेल के नाम से जाना जाएगा और वाकायदा जेल को गजट में रघबर जेल घोषित किया गया...!!
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शब्द संयोजन

अशोक सूर्यवेदी