Friday, August 1, 2014

काल चक्र का झंझावत और गढ़कुंडार

रत्न जडित स्वर्ण सिंहासन ,
मुक्ता मणियों के उर हार !
शीश मुकुट बहु बेशकीमती ,
सब हो गए हैं क्षार क्षार !
दुनियां वालो देखो नाटक ,
नियति नटी के नर्तन का !
काल चक्र के झंझावत में ,
बचा अकेला गढ़ कुंडार !!
..................."अशोक सूर्यवेदी"

1 comment:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" शनिवार 26 दिसम्बर 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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