Wednesday, July 30, 2014

"लुकाछिपी गढ़कुंडार की"

मंजिल पास आ जाती है तो ,
आड़े आता है संसार !
रोड़े और रूकावट है भ्रम ,
लौट न जाना तू थक हार !
इसकी जटिल भुगौलिक रचना ।
हृदय भाँपती आगत का !
सो पथिक से लुकाछिपी सी ,
करता रहता गढ़ कुंडार !!
..........."अशोक सूर्यवेदी"

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