Thursday, July 31, 2014

"गढ़कुंडार की नीरवता"

शासन सत्ता न्योता देते ,
और बुलाते आग व धार !
दरबारों की रौनकता पर ,
शीश कटाते बारम्बार !
कर्कशा ,कुटिल ,कौटाली थी ,
तजी ,रौनकता यह जान !
रचा कर नीरवता से व्याह ,
मौज मनाता गढ़ कुंडार !!
.............."अशोक सूर्यवेदी"

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